(चित्र गूगल से साभार)
यूँ ही .....
थाम कर हाथ
बेख्याली में
चल पड़ी सदी
ठगी सी खड़ी है
सप्तपदी ।1
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सकरी गलियाँ
सीलन भरे अँधेरे
धूप का स्वाद 
कैसे बताएँ
लील गईं सूरज
अट्टालिकाएँ ।2
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हाथ कुछ आता नहीं 
बेचैन कर जाते हैं 
जाने ये सपने 
क्यों आते हैं !3
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हे ईश्वर !
उसकी
तृप्ति भरी शाम हो 
सुखद सवेरा हो 
जो बचे उसकी चाहत से 
वही, बस वही मेरा हो ।4
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रिश्ता तो बस ऐसे
बनाया और निभाया जाए
जैसे टूटे सपनों की किरचें
चुभती हैं आँखों में 
और ....
घाव दिल पर उभर आए ।5
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नजदीकियों को
कर दिया दूर
बढ़ा दिया 
दूर वाला प्यार 
मोबाईल फोन ने 
इतना किया उपकार ।6
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मत मिलो मुझसे
मत प्यार बरसाओ
बस इतना कर दो
आंखें मूँदूं तो
तुम बस तुम नज़र आओ ।7
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मैंने किया उसका
अभिनंदन !
नज़र भी उतारी है
प्रेम से भरी एक कविता
नफरत के महाकाव्यों पर 
भारी ! बहुत भारी है ।8
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सुन्दर इच्छाओं के 
गुलाबों से
मन को कुछ ऐसे
सजाया जाए
फिर ....
कर्मों की माला 
बनाकर धरा को 
महकाया जाए.....।9
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अनुनय की धरा ने
गिड़गिड़ाई
नहीं माना सागर
खूब गरजा, बरसा,
"तुमने अपने बच्चों को 
अक्ल नहीं सिखाई" ।10
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सबको भाती है 
मुस्कानों की बंदनवार
कोई-कोई सुनता है 
भीतर के मौन का 
हाहाकार ।11
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मसले पड़े हैं फूल,
कलियाँ , 
पत्तियाँ आहें भरतीं हैं 
हैरत है !
तितलियाँ फिर भी 
उड़ान भरतीं हैं ।12
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ठोका , पीटा , तराशा
कभी तपाया , गलाया
फिर मुस्कराया ....
तूने मुझे 
मैंने तुझको बनाया।13
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आँखों में अनुरोध लिए
उसने कहा 
माँ! मेरा जन्मदिन 
ऐसे मनाना
आज आप मुझे 
अकेले मत सुलाना।14
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उन्होने
जलसे में बाँटकर 
शब्दों की मिठाई
नन्हे रामू की
खूब फटकार लगाई
क्यों रे !
तुझे अब तक 
कार धोनी न आई !15
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डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
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