बड़ी उदासी
थी कल मन में
क्यों हमने घर छोड़ दिया !
रीति कौन बताए मुझको,
संध्या गीत सुनाए मुझको
कौन पर्व है कौन तिथि पर
इतना याद दिलाए मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाईवे से जोड़ दिया .......
दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली थी कुछ बेरंगी सी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया ......
राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन, राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
अंतर्जाल ने तोड़ दिया.........
बड़ी उदासी
थी कल मन में
क्यों हमने घर छोड़ दिया !
Jyotsna Sharma
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहृदय से आभार सखी, देर से देख पाने के लिए क्षमा 🙏
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हृदय से आभारी हूँ और विलम्ब हेतु क्षमाप्रार्थी भी 🙏
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
ReplyDeleteसार्थक सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीय
Deleteमन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी।
ReplyDeleteप्रेरक प्रतिक्रिया हेतु बहुत आभार आपका 🙏
Deleteवाह अद्भुत
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका 🌻🙏
Deleteभीड़ बहुत पर रहे अकेले
ReplyDeleteकैसे जाल निराशा का फिर
अंतर्जाल ने तोड़ दिया
सुन्दर भावाभिव्यक्ति..
हृदयतल से आभारी हूँ 🌻🙏
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-10-2020) को "मन आज उदास है" (चर्चा अंक-3849) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार आपका
Deleteअति सुन्दर लेख|
ReplyDeleteHindi Vyakran Samas
हार्दिक धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर नवगीत कोमल भावों का मधुरिम संयोजन।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका
Deleteतीज के मेले हम कब भूले
ReplyDeleteसावन, राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले.
- घर छोड़ने का पछतावा ....
दिल से शुक्रिया आपका 🌻🙏
Deleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteहृदय से आभार
Deleteबेहतरीन !!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका 🙏
Deleteबेहतरीन !!
ReplyDeleteरीति कौन बताए मुझको,
ReplyDeleteसंध्या गीत सुनाए मुझको
कौन पर्व है कौन तिथि पर
इतना याद दिलाए मुझको
बहुत उम्दा गीत ।
बहुत बहुत आभार सखी जी 🌹🙏
Delete