चित्र गूगल से साभार
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
२
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
१
मीरा नहीं हूँ मैं राधा नहीं हूँ ,
बस एक ज़र्रे से ज़्यादा नहीं हूँ |
या तुम हो मेरे या मैं तुम्हारी ,
मोहन मेरे भाव आधा नहीं हूँ |
दिन-रैन जिसने घुमाया है मुझको
कैसे कहूँ उसका प्यादा नहीं हूँ |
जिसको ज़रा बेरुखी तोड़ देगी ,
ऐसा मैं कोई इरादा नहीं हूँ |
मंज़िल को मुझसे बहुत उन्सियत है ,
ख़ुद से ख़ुदी का मैं वादा नहीं हूँ |
२
हमने ख़्वाब सुहाने देखे ,
अपने या बेगाने देखे |
गीतों की महफ़िल थी लेकिन ,
फैले बस वीराने देखे |
कतरे-कतरे में सागर था ,
सागर में पैमाने देखे |
हैरत है पर सच्चाई पर ,
कुछ लुटते दीवाने देखे |
रौशन एक शमां खुद्दारी ,
जल मरते परवाने देखे |
~~~****~~~
भावमय हैं दोनों रचनाएं ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद |
Deleteसादर !
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद |
Deleteसादर !
ज्योत्स्ना जी दोनों कविताएँ कम से कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती हैं। सहजता और प्रवाह दोनों गुणों से सम्पन्न है आपकी सर्जना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार भैया जी !
Deleteसादर !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (04-03-2014) को "कभी पलट कर देखना" (चर्चा मंच-1541) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
hruday se aabhaar aapakaa .
Deletesaadar !
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आपका-
hruday se dhanyawaad .
Deletesaadar !
रौशन एक शमां खुद्दारी ,
ReplyDeleteजल मरते परवाने देखे |
....... कुछ कह जाती हैं दोनों कविताएँ
हृदय से आभार आपका |
ReplyDeleteसादर !