Sunday, 2 March 2014

मोहन मेरे !!!

                                   चित्र गूगल से साभार 

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 

१ 
मीरा नहीं हूँ मैं राधा नहीं हूँ ,
बस एक ज़र्रे से ज़्यादा नहीं हूँ |

या तुम हो मेरे या मैं तुम्हारी ,
मोहन मेरे भाव आधा नहीं हूँ |

दिन-रैन जिसने घुमाया है मुझको
कैसे कहूँ उसका प्यादा नहीं हूँ |

जिसको ज़रा बेरुखी तोड़ देगी ,
ऐसा मैं कोई इरादा नहीं हूँ |

मंज़िल को मुझसे बहुत उन्सियत है ,
ख़ुद से ख़ुदी का मैं वादा नहीं हूँ |



हमने ख़्वाब सुहाने देखे ,
अपने या बेगाने देखे |

गीतों की महफ़िल थी लेकिन ,
फैले बस वीराने देखे |

कतरे-कतरे में सागर था ,
सागर में पैमाने देखे |

हैरत है पर सच्चाई पर ,
कुछ लुटते दीवाने देखे |

रौशन एक शमां खुद्दारी ,
जल मरते परवाने देखे |

~~~****~~~




12 comments:

  1. भावमय हैं दोनों रचनाएं ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद |
      सादर !

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद |
      सादर !

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  3. ज्योत्स्ना जी दोनों कविताएँ कम से कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती हैं। सहजता और प्रवाह दोनों गुणों से सम्पन्न है आपकी सर्जना

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    1. बहुत बहुत आभार भैया जी !
      सादर !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (04-03-2014) को "कभी पलट कर देखना" (चर्चा मंच-1541) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आपका-

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  6. रौशन एक शमां खुद्दारी ,
    जल मरते परवाने देखे |

    ....... कुछ कह जाती हैं दोनों कविताएँ

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  7. हृदय से आभार आपका |

    सादर !

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