Tuesday, 22 July 2014

याद आती रही !



                                                           
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 


हसरतों का जला कारवाँ देर तक ,
देखते ही रहे हम धुआँ देर तक |

वक्त रहते बुझाईं न चिंगारियाँ ,
फिर सुलगती रहीं बस्तियाँ देर तक |

थाम ले नाखुदा यूँ भटकने न दे ,
खुद सँभलती नहीं कश्तियाँ देर तक |

क्या करें ग़म का मौसम बदलता नहीं ,
सह न पाएँगे हम तल्खियाँ देर तक |

अश्क मेरे अभी पोंछ बिटिया गई ,
याद आती रही मुझको माँ देर तक |

नाम तेरा भला आज क्या ले लिया ,

फिर महकती रही ये फिजाँ देर तक |
 



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(  चित्र गूगल से साभार   )


28 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय !

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  2. खुबसूरत अभिवयक्ति......

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  3. नाम तेरा भला आज क्या ले लिया ,
    फिर महकती रही ये फिजाँ देर तक |
    ……… बहुत सुन्दर !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. क्या करें ग़म का मौसम बदलता नहीं ,
    सह न पाएँगे हम तल्खियाँ देर तक |

    वाह! बहुत खूब!!
    बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. हर शेर खूबसूरत...बधाई

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  6. ब्लॉग बुलेटिन की आज शुक्रवार २५ जुलाई २०१४ की बुलेटिन -- कुछ याद उन्हें भी कर लें– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार!

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  7. कविता कोमल पंखुड़ी की ताह है । ज़रा छू जाए और खुशबू बिखर-बिखर जाए । ऐसी ही है आपकी ग़ज़ल । इन पंक्तियों का कोई सानी नहीं।
    अश्क मेरे अभी पोंछ बिटिया गई ,

    याद आती रही मुझको माँ देर तक |
    रामेश्वर काम्बोज

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  8. अश्क मेरे अभी पोंछ बिटिया गई ,

    याद आती रही आज माँ देर तक |

    क्या बात है।

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  9. मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करती रचना ...

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  10. हसरतों का जला कारवाँ देर तक ,
    देखते ही रहे हम धुआँ देर तक |

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  11. अश्क मेरे अभी पोंछ बिटिया गई ,
    याद आती रही मुझको माँ देर तक |

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