Wednesday, 5 November 2014

कहाँ जाते हम रूठ कर



डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
उम्मीदों को दिल में जगाया तो होता,
ख़ुदी को कभी आज़माया तो होता । 1
छुटकी बहन सी ठुनकती हैं ग़ज़लें ,
बड़े भाई -सा सर पे साया तो होता ।2
मुहब्बत नहीं सिर्फ़ लैला के क़िस्से ,
कोई पाक रिश्ता बनाया तो होता ।3
सभी मुश्किलों का वो हल देगा ,तुमने,
इबादत में सर को झुकाया तो होता ।4
कहाँ जाते हम रूठ कर ,लौट आते ,
ज़रा सा भी तुमने मनाया तो होता ।5
कहे जाते हैं ,जो भी कहना था हम ,फिर,
न कहना सुना और सुनाया तो होता ।6
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8 comments:

  1. Replies
    1. हृदय से धन्यवाद आपका !


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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.11.2014) को "पैगाम सद्भाव का" (चर्चा अंक-1790)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  3. कहे जाते हैं ,जो भी कहना था हम ,फिर,
    न कहना सुना और सुनाया तो होता ।

    वाह वाह :)

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  4. सभी मुश्किलों का वो हल देगा ,तुमने,
    इबादत में सर को झुकाया तो होता
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. कहाँ जाते हम रूठ कर ,लौट आते ,
    ज़रा सा भी तुमने मनाया तो होता ...
    बहुत खूबसूरत और उम्दा शेर ...एक अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !!


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