डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
होते नहीं निराश
कितना कठिन समय हो
रवि तुम! कब लेते अवकाश!
कुहर, तुहिन कण, बरखा, बादल
मिलकर करें प्रहार
अम्बर के एकाकी योद्धा
कभी न मानो हार!
अवनि से आकाश तलक दो
सबको तेज, प्रकाश!
धुन के पक्के, जान गए सब
अकड़ू हो थोड़े
भेजा करते हो सतरंगी
किरणों के घोड़े
जग उजियारा करें, मिटा दें
तम को रहे तलाश!
उलझन ले हम आए दिनकर
पास तुम्हारे हैं
मानव-मन में दानवता ने
पाँव पसारे हैं
जुगत बताओ हमको इसका
कैसे करें विनाश!
- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
१२ जनवरी २०१५
दिन भर जलना तपना, ढलना
होते नहीं निराश
कितना कठिन समय हो
रवि तुम! कब लेते अवकाश!
कुहर, तुहिन कण, बरखा, बादल
मिलकर करें प्रहार
अम्बर के एकाकी योद्धा
कभी न मानो हार!
अवनि से आकाश तलक दो
सबको तेज, प्रकाश!
धुन के पक्के, जान गए सब
अकड़ू हो थोड़े
भेजा करते हो सतरंगी
किरणों के घोड़े
जग उजियारा करें, मिटा दें
तम को रहे तलाश!
उलझन ले हम आए दिनकर
पास तुम्हारे हैं
मानव-मन में दानवता ने
पाँव पसारे हैं
जुगत बताओ हमको इसका
कैसे करें विनाश!
- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
१२ जनवरी २०१५
चित्र गूगल से साभार
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (16.01.2015) को "अजनबी देश" (चर्चा अंक-1860)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteइस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
सुंदर, प्रभावी रचना...मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteइस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
प्रशंसनीय रचना - बधाई मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteआग्रह है-- हमारे ब्लॉग पर भी पधारे
शब्दों की मुस्कुराहट पर ...पुरानी डायरी के पन्ने : )
इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमकरसंक्रान्ति की शुभकामनायें
इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
इस दानवता को खुद की मारना होगा ... जागना होगा ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
सच कहा आपने !
ReplyDeleteइस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा