डॉ०ज्योत्स्ना शर्मा
1
ड्योढ़ी पर दीप जला
हँसता उजियारा
तम के मन ख़ूब खला ।
2
बैरन हैं ये सखियाँ
लब ख़ामोश रहें
चुग़ली खातीं अँखियाँ ।
3
मन-उत्सव मन जाते
जो तेरे मन का
अनमोल रतन पाते ।
4
है कुफ़्र सितारों का
बीत गया तन्हा
ये वक़्त बहारों का ।
5
थोड़े से हैं खारे
आए हैं दिल से
सुख-दुख के हरकारे ।
6
देखूँ खिलती कलियाँ
याद बहुत आएँ
बाबुल तेरी गलियाँ ।
7
फूलों की थी ढेरी
शूल चुभाती है
यादों की झरबेरी ।
8
साथी ना संगी हैं
ये सुख दुनिया के
अहसास पतंगी हैं ।
9
मुश्किल-सा रस्ता है
बिखरी यादों का
ये दिल गुलदस्ता है ।
10
कैसा यह खेल किया
झूठे सपनों से
अँखियों का मेल किया ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-01-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1866 में दिया गया है
ReplyDeleteधन्यवाद
आपसे मिले स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभारी हूँ !
Deletesakhi bahut pyare mahiya hain hardik badhai
ReplyDeleteआपसे मिले स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभारी हूँ !
Deleteसुंदर पंक्तियों से सजे माहिया बेहद पसंद आए
ReplyDeleteप्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभार आपका !
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
मनमोहक माहिया ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका !
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