डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
साथ तुम्हारा करता है मग़रूर मुझे,
दिल से अपने अब मत करना दूर मुझे |
बाबुल तेरी उँगली थामे घूम फिरी ,
तब लगती थी ये दुनिया मश्कूर मुझे |
माँ तेरी जाई के पंखों में दम है ,
सच कहती हूँ ! क्यों समझा मजबूर
मुझे|
घर तेरा और माँ-बाबू जी हैं मेरे,
कर लो ये बँटवारा है मंज़ूर मुझे |
सपने तोड़े ,पाँव बेड़ियाँ ,रस्ते बंद ,
कर पाए क्या फिर भी चकनाचूर मुझे |
क़लम-सियाही ! सखी ! तुम्हारी
सोहबत ये,
रफ्ता-रफ्ता कर देगी मशहूर मुझे |
खोल दिए हैं तुमने खिड़की -
दरवाज़े
खूब निभाने आते पर दस्तूर मुझे ||
डॉ . ज्योत्स्ना शर्मा
०८-०३-१५
बेहद उम्दा ग़ज़ल...हर शेर नायाब...दिली मुबारकबाद!!
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद आपका !
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल ज्योति जी
ReplyDeletebahut bahut aabhaar Sanjay ji !
ReplyDeleteये पंक्तियाँ आज की नारी की ताकत हैं-
ReplyDeleteमाँ तेरी जाई के पंखों में दम है ,
सच कहती हूँ ! क्यों समझा मजबूर मुझे|।
हृदय से धन्यवाद आपका !
Deletenice gazal !
ReplyDeletethank you very much tbsingh ji !
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