Sunday, 8 March 2015

सच कहती हूँ !




डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

साथ तुम्हारा करता है मग़रूर मुझे,
दिल से अपने अब मत करना दूर मुझे |

बाबुल तेरी उँगली थामे घूम फिरी ,
तब लगती थी ये दुनिया मश्कूर मुझे |

माँ तेरी जाई के पंखों में दम है ,
सच कहती हूँ ! क्यों समझा मजबूर मुझे| 

घर तेरा और माँ-बाबू जी हैं मेरे,
कर लो ये बँटवारा है मंज़ूर मुझे |

सपने तोड़े ,पाँव बेड़ियाँ ,रस्ते बंद ,
कर पाए क्या फिर भी चकनाचूर मुझे |

क़लम-सियाही ! सखी ! तुम्हारी सोहबत ये,
रफ्ता-रफ्ता कर देगी मशहूर मुझे |

खोल दिए हैं तुमने खिड़की - दरवाज़े 
खूब निभाने आते पर दस्तूर मुझे ||

डॉ . ज्योत्स्ना शर्मा 
०८-०३-१५


8 comments:

  1. बेहद उम्दा ग़ज़ल...हर शेर नायाब...दिली मुबारकबाद!!

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  2. हृदय से धन्यवाद आपका !

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  3. उम्दा ग़ज़ल ज्योति जी

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  4. ये पंक्तियाँ आज की नारी की ताकत हैं-
    माँ तेरी जाई के पंखों में दम है ,
    सच कहती हूँ ! क्यों समझा मजबूर मुझे|।

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    1. हृदय से धन्यवाद आपका !

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