डॉ• ज्योत्स्ना
शर्मा
नेक फ़रिश्ते से हुई, जब भीतर
पहचान ।
तभी सफल पूजन-भजन ,रोज़े या रमज़ान।।१
भक्ति भाव मन में लिये ,दान,धर्म कर जाप ।
रोज़े और ज़कात से, काट जगत
के पाप ।।२
सबको 'प्यारे चाँद'
की , हो जाए गर दीद।
होली ,दीवाली अभी ,खूब मने फिर ईद ।।३
ज़ख़्म सिए ,उनके किए,पूरे कुछ अरमान ।
मुझको ईदी में मिलीं , ढेर दुआ ,मुस्कान ।।४
चाँद वही,सूरज वही,गगन,पवन वह नूर ।
धरती किसने बाँट दी, दिल से
दिल क्यों दूर ।।५
मेहनत करते हाथ को,बाक़ी है
उम्मीद ।
रोज़-रोज़ रोज़ा रहा , अब आएगी ईद ।।६
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(चित्र गूगल से साभार)
ईद के उपलक्ष्य में बहुत अच्छे दोहे प्रस्तुत किए गए हैं। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteरामेश्वर काम्बोज
बहुत-बहुत आभार आपका !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-07-2015) को "कुछ नियमित लिंक और आ.श्यामल सुमन की पोस्ट का विश्लेषण" {चर्चा अंक - 2040} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत -बहुत आभार आदरणीय !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteईद मुबारक!
हृदय से आभार आपका !
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletehttp://onkarkedia.blogspot.in/
हृदय से आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका !
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