-डॅा. ज्योत्स्ना शर्मा
कैसे गाऊँ गीत सुहाना !
क्या सम्भव है ?
तृष्णा के तपते अधरों पर
तृप्ति का आकर मुस्काना !
अरे आग्रही ! मत फँस इनमें
ये इच्छाएँ छद्म परी हैं
मधुर, मदिर, मुस्कान नशीली
इन्द्रजाल की कनक-छरी हैं
युगों-युगों से सिखा रही हैं
तंत्र-मंत्र, पथ से भटकाना।
ऊहापोह की नदिया ,माँझी
कण्ठ-कण्ठ तक डूब गया है।
हाय उजाला देते-देते
क्या सूरज भी ऊब गया है
मावस की मन्थर गति चाहे
धवल चाँदनी का बिछ जाना ।
कैसे गाऊँ गीत सुहाना !
-०-
( चित्र गूगल से साभार )
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-07-2018) को "अज्ञानी को ज्ञान नहीं" (चर्चा अंक-3042) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस प्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
मन के तरल भाव को शब्द दे दिए हैं ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है ...
इस प्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
हृदयस्पर्शी, गीत प्रिय सखी, आप की लेखनी ऐसे ही चलती रहे🌷🌷🌷🌷🍫🍫🍫🍫
ReplyDeleteइस स्नेह का वंदन अभिनन्दन सखी !
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