है सुन्दर उपहार ज़िंदगी
सुख-दुख का भण्डार ज़िंदगी ।
तेरा- मेरा प्यार ज़िंदगी
मीठी- सी तकरार ज़िंदगी ।
खो बैठे धन अमर-प्रेम का
तब तो केवल हार ज़िंदगी ।
देती जो मुसकान , धरा का-
करती है शृंगार ज़िंदगी ।
काँटे-कलियाँ बीन-बीनकर
रचे सुगुम्फित हार ज़िंदगी।
इधर कुआँ है उधर है खाई
दोधारी तलवार ज़िंदगी ।
खूब मनाए मन का उत्सव
बन जाए त्योहार ज़िंदगी ।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
(चित्र गूगल से साभार)
तेरा मेरा प्यार ज़िंदगी
ReplyDeleteमीठी-सी तकरार ज़िंदगी !
खो बैठे धन अमर-प्रेम का
ReplyDeleteतब तो केवल हार ज़िंदगी !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 04 एप्रिल 2023 को साझा की गयी है
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हृदय से आभार आपका 🙏
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार 🙏
Delete
ReplyDeleteखूब मनाए मन का उत्सव
बन जाए त्योहार ज़िंदगी ।
सुंदर रचना ।
हार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteछोटे-छोटे मिसरों वाले शेरों से गुंथी ख़ूबसूरत ग़ज़ल रची है आपने।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteवाह! बहुत सुंदर
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया 🙏
Deleteमुग्ध करती अनुपम कृति
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका 🙏
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (9-4-23} को "हमारा वैदिक गणित"(चर्चा अंक 4654) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत आभार कामिनी जी , क्षमा चाहती हूँ देर से देख सकी क्योंकि न जाने क्यों आपका कमेंट प्रकाशित नहीं हुआ था , अभी देखा 🙏
Deleteबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका 🙏
Deleteखो बैठे धन अमर-प्रेम का
ReplyDeleteतब तो केवल हार ज़िंदगी ।
वाह!!!
लाजवाब गीतिका।
बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏💐
Deleteबड़ी ही उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका 🙏
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब।
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया आपका 🙏
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