Wednesday, 1 November 2023

185- अर्घ्य प्रेम का

 



दिल ये चाहे
बिखरा दूँ कलियाँ
राहों में तेरी ।

न आँसू तुम
कजरा भी नहीं हो
नैनों मे बसे ।

चिरसंगिनी
खुशियाँ हों तुम्हारी
दुआ हमारी ।

लाज-चूनर
उमंगों के कंगन
प्रेम का अर्घ्य ।

सौभाग्य माँगूँ
खुशियों की पायल
बजती रहे ।

हों पूरे सदा-
नयनों में सजे जो,
ख्वाब तुम्हारे ।

तेरे प्यार ने
नहीं बुझने दिया
जीवन-दिया ।

मेरी दुआएँ
सजनी सदा संग
पिया का पाएँ ..... करक चतुर्थी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐

ज्योत्स्ना 




Tuesday, 5 September 2023

184- शिक्षक खेवनहार !


 

मात-पिता शिक्षक प्रथम , दूजे शिक्षाधाम
तीजे जड़-जंगम जगत , सबको करूँ प्रणाम ।।

नन्हें पौधों को दिया, स्नेह सींच विस्तार ।
माली बनकर आपने , सबको दिया सँवार ।।

भ्रम के अँधियारे घिरें , सूझे आर न पार ।
देकर दीपक ज्ञान का , करते पथ उजियार ।।

उच्च लक्ष्य सन्धान कर , करें राष्ट्र निर्माण ।
महिमा गुरुवर आपकी , गाते वेद-पुराण।।

लोभ , मोह , छल छद्म का ,सागर है संसार  ।
जीवन नैया बढ़ चले , शिक्षक खेवनहार ।।

निर्माता हैं राष्ट्र के , रविकर-निकर समान ।
सदा हृदय से कीजिए, शिक्षक का सम्मान ।।

व्यस्त रहें शिक्षक सदा, हो कोई अभियान ।
अध्यापन का दीजिए , समय इन्हें श्रीमान ।।


भारत के पूर्व राष्ट्रपति , प्रसिद्ध शिक्षाविद्, महान विचारक डॉ.  सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयन्ती पर उन्हें शत् शत् नमन तथा सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐🙏💐


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा






Tuesday, 4 July 2023

183- वो मेरी बातों में उलझें !

 

                               (चित्र गूगल से साभार)

1

मेरी मानो हो तो ऐसा कर देना
उसके सारे घावों को तुम भर देना ।

आकर जिसमें चैन मिले , सुख पाए मन
हर बन्दे को ,अपना ऐसा घर देना  ।

पंख कटे थे कैद रहे सपने जिसके
साथ-साथ अम्बर के उसको पर देना ।

मामूली बातों पर झगड़ा ,खूँ रेज़ी
थोड़ा सा तो नरम-नरम तेवर देना  ।

वो मेरी बातों में उलझें, रुक जाएँ
मुझको भी कुछ ऐसा मीठा स्वर देना ।


2

खुश हैं शोर मचाने वाले ,क्या कहिए !
चुप हैं राह दिखाने वाले , क्या कहिए !

दीख रहे हैं  ,अचरज ! नेत्रविहीनों को,
सूरज की आँखों पर जाले , क्या कहिए !

खूब कसीदे पढ़ते रात घनेरी के ,
हाथ धूप के लगते काले ,क्या कहिए !

हमने सोचा था कुछ होंगे महफिल में
बेसुध की सुध लेने वाले, क्या कहिए !

बातें करते रहते हैं गंगाजल की
पथ चुनते मदिरालय वाले , क्या कहिए !

उनको डर जब पर्त उधेड़ी जाएगी
निकलेंगे कितने घोटाले , क्या कहिए !

करनी है सो भरनी होगी तय है मन ,
चाहे कितनी जुगत भिड़ा ले, क्या कहिए !

फेंक रहा था जाल मछेरा , मत जाते
तड़प रहे अब कौन निकाले, क्या कहिए !

नफरत मत दो , प्रेम भरो , सच्चाई दो
बच्चों के मन भोले- भाले , क्या कहिए !


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

Saturday, 13 May 2023

182-बस नाम तुम्हारा !



जन्मा मुझे ,मैं जो भी हूँ उसने ही बनाया
खाना, लिखना , बोलना उसने ही सिखाया
सही गलत की उसने ही पहचान बताई
चलना है मुझे जिसपे सही पथ भी दिखाया ।।1
        **************
मुस्कुराके लाड़ से दुलारती भी है
बालों को बड़े प्यार से संवारती भी है
दो पल उदास वो मुझे रहने नहीं देती
करती हूँ गल्तियां तभी फटकारती भी है।।2
         ***************
छाए निराशा उसने गले से लगा लिया
आँचल में अपने प्यार से कितने छुपा लिया
अपने लिए किसी से कुछ भी मांगती न थी
बच्चों के लिए घर को ही सिर पर उठा लिया ।।3
         **************
अपनी चाहतों को जिया ही नहीं कभी
पीड़ा का अपनी ज़िक्र किया ही नहीं कभी
हौंसलों को मेरे उसने पंख दे दिए
सपनों पे अपने ध्यान दिया ही नहीं कभी ।।4
         **************
सबके मनों को जानती है मन की नेक है
सब मोतियों को जोड़ता धागा वो एक है
भेद सबके मौन में रखती लपेटकर
तब ही तो सबके मन की मधुरतम सी टेक है।।5
           *************
साए में जिसके प्यारी धूप प्यारी शाम है
जो सबके लिए सारे सुखों का ही धाम है
पुकारते हैं मुश्किलों में बस सदा ही 'माँ' !
आता है याद जो वो तुम्हारा ही नाम है ।।6

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 



Sunday, 2 April 2023

181- है सुन्दर उपहार ज़िंदगी !


 

है  सुन्दर  उपहार ज़िंदगी

सुख-दुख का भण्डार ज़िंदगी ।


तेरा- मेरा प्यार ज़िंदगी 

मीठी- सी तकरार ज़िंदगी ।


खो बैठे धन अमर-प्रेम का 

तब तो केवल हार ज़िंदगी ।


देती जो मुसकान , धरा का-

करती है शृंगार ज़िंदगी ।


काँटे-कलियाँ बीन-बीनकर

रचे सुगुम्फित हार ज़िंदगी।


इधर कुआँ है उधर है खाई

दोधारी तलवार ज़िंदगी ।


खूब मनाए मन का उत्सव 

बन जाए त्योहार ज़िंदगी ।


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

(चित्र गूगल से साभार)




Tuesday, 7 March 2023

180-लौटी जो घर

(चित्र गूगल से साभार) 
 1 
कितना गुस्सा थी मैं 
किसी की नहीं सुनी 
मन का पहना , मन का खाया 
कितना शोर मचाया 
खूब भटकी 
अपनी 'आज़ादी' के साथ
 लौटी जो घर.... न जाने किन 
ख्यालों में खो गई 
और फिर .... तुम्हारे कन्धे पर 
सिर रखकर सो गई । 
 2 
 सकरी गलियों में 
बड़े-बड़े वाहन 
अटक ही जाएँगे 
 सुनो ! मन को विस्तार दो 
 तभी बड़े विचार आएंगे । 
 3 
आज के दौर में
 दीमकों ने खाई तो , 
किताब मुस्कराई 
और बोली ...चलो ! किसी के तो काम आई ।
 4 
झूठ के नगर में 
किसी ने हमारे 
प्यारे 'सच' की बात चला दी 
सब चिल्लाए , " ऐसा कुछ नहीं होता है"
 मज़े की बात हमने भी हाँ में हाँ मिला दी।

 ************** 
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा