डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
(बस चित्र के भाव पर .....एक प्रस्तुति ......)
कजरारी अँखियाँ करें ,आज
वार पर वार।
हमसे जीतोगे पिया ,पाओगे
तुम हार।।
चमकी चित में चाँदनी ,दम-दम
दमके रूप ,
पाई जब से देह ने ,तेरे
नेह की धूप।
यूँ तो तुमसे मिल हुईं ,सब
आशा साकार ;
हमसे जीतोगे पिया ,पाओगे
तुम हार।।
दुनिया ने सपने बुने ,हमने
बुन ली प्रीत ,
ड्योढ़ी लँघी न लाज की , छोड़ न पाई रीत।
दुख देकर चाहा नहीं ,सुखों
भरा संसार ;
हमसे जीतोगे पिया ,पाओगे
तुम हार।।
अब किससे शिकवा करें ,कहाँ
करें फरियाद ,
कौन पहर आई नहीं ,हमें
तुम्हारी याद।
पलक मूँद,मन , कैद कर! हुकुम करे सरकार ;
हमसे जीतोगे पिया ,पाओगे
तुम हार।।
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सुंदर रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका |
Deleteसादर
ज्योत्स्ना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (03-05-2014) को "मेरी गुड़िया" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1601 में अद्यतन लिंक पर भी है!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद आपका |
Deleteसादर
ज्योत्स्ना
सुंदर भाव, मन को छू जाती पंक्तियाँ... इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकारें..
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका |
Deleteसादर
ज्योत्स्ना
चित्र के भाव पर इतनी सुन्दर प्रस्तुति .. ..सामने साक्षात हो तो फ़िर क्या कहने। .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .!
हार्दिक धन्यवाद आपका |
Deleteसादर
ज्योत्स्ना