डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
गौमुख से गंगा चली , बह सागर की ओर ,
देख रही माँ भारती ,होकर भाव –विभोर |
होकर भाव- विभोर , हुई हर्षित भू पावन ,
नित-नित संध्या भोर , सुहावन तट मन-भावन |
जिसका केवल ध्यान ,भरे जीवन को सुख से ,
कर तन-मन अम्लान , चली गंगा गौमुख से ||
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चित्र गूगल से साभार
सुंदर ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद् आपका !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-05-2015) को "जय माँ गंगे ..." {चर्चा अंक- 1990} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteजय माँ गंगे !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteजय गंगे....
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteपावन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति, सार्थक पंक्तियाँ....जीवनदायिनी माँ गंगा को शत शत नमन !!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका !
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