डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
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बस फूलों की राहें पाना ऐसे थे अरमान नहीं ,
बस फूलों की राहें पाना ऐसे थे अरमान नहीं ,
मिलकर रहना साथ
बड़ा सुख इस सच से अनजान नहीं ।
आज शिकायत ख़ुद से
हमको हर कोशिश नाकाम हुई ;
ग़ैरों से अपनापन
पाना इतना भी आसान नहीं । ।
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उर्वर धरती में
बोया है बीज कभी तो सरसेगा ,
कोई मधुरिम गीत
कभी तो मन को उनके परसेगा ।
अपना हो या किसी
और का दर्द यही फ़ितरत उसकी ;
बसे
नयन में या बादल में पानी है तो बरसेगा । ।
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बहुत सुंदर एवं प्रभावी मुक्तक।
ReplyDeleteपानी है तो बरसेगा, बहुत गहन अभिव्यक्ति
हृदय से आभार आदरणीय , सदैव स्नेह और आशीर्वाद रहे आपका !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-03-2017) को "रचो ललित-साहित्य" (चर्चा अंक-2920) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteबहुत सुंदर मुक्तक, बधाई आदरणीया।
ReplyDeleteबहुत आभार कविता जी !
Deleteग़ैरों से अपनापन पाना इतना भी आसान नहीं ..... बहुत सुंदर मुक्तक ज्योत्स्ना जी
ReplyDeleteबहुत आभार सुनीता जी |
Deleteबहुत सुंदर छन्द ..।
ReplyDeleteसच है नयन में आँसू छलक आते हैं दर्द देख कर बस संवेदना होनी चाहिए दिल में और दिर ग़ैरों से अपनपन पाना ... सच में आसान नहीं होता ...
छोटे पर गहरी बात लिए प्रवाहमय मुक्तक ...
हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteबहुत सुन्दर मुक्तक, बधाई ज्योत्स्ना जी.
ReplyDeleteबहुत आभार जेन्नी जी !
Deleteबहुत सुंदर मुक्तक
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद संजय भास्कर जी 🙏
ReplyDeleteअतिसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद !
Deleteबहचत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहृदय से आभार !
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