Saturday, 24 March 2018

130 दो मुक्तक !

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

1
बस फूलों की राहें पाना ऐसे थे अरमान नहीं ,
मिलकर रहना साथ बड़ा सुख इस सच से अनजान नहीं 
आज शिकायत ख़ुद से हमको हर कोशिश नाकाम हुई ;
ग़ैरों से अपनापन पाना इतना भी आसान नहीं । ।
                                2
       उर्वर धरती में बोया है बीज कभी तो सरसेगा ,
       कोई मधुरिम गीत कभी तो मन को उनके परसेगा ।
       अपना हो या किसी और का दर्द यही फ़ितरत उसकी ;
       बसे नयन में या बादल में पानी है तो बरसेगा । ।   

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19 comments:

  1. बहुत सुंदर एवं प्रभावी मुक्तक।
    पानी है तो बरसेगा, बहुत गहन अभिव्यक्ति

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    1. हृदय से आभार आदरणीय , सदैव स्नेह और आशीर्वाद रहे आपका !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-03-2017) को "रचो ललित-साहित्य" (चर्चा अंक-2920) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !

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  3. बहुत सुंदर मुक्तक, बधाई आदरणीया।

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  4. ग़ैरों से अपनापन पाना इतना भी आसान नहीं ..... बहुत सुंदर मुक्तक ज्योत्स्ना जी

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  5. बहुत सुंदर छन्द ..।
    सच है नयन में आँसू छलक आते हैं दर्द देख कर बस संवेदना होनी चाहिए दिल में और दिर ग़ैरों से अपनपन पाना ... सच में आसान नहीं होता ...
    छोटे पर गहरी बात लिए प्रवाहमय मुक्तक ...

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    1. हृदय से आभार आदरणीय !

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  6. बहुत सुन्दर मुक्तक, बधाई ज्योत्स्ना जी.

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    1. बहुत आभार जेन्नी जी !

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  7. बहुत सुंदर मुक्तक

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  8. हृदय से धन्यवाद संजय भास्कर जी 🙏

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  9. बहचत सुंदर

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  10. बहुत सुंदर

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