डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
सूरज ने कल मुझसे कहा बात बात में
धूप-सी तुम भी खिलो.. तो मेरे साथ में
मैं भी उसके साथ हँसी और खिल गई
उजली चदरिया बनूँ बुनकर से मिल गई
सूरज ने कल मुझसे कहा बात बात में
धूप-सी तुम भी खिलो.. तो मेरे साथ में
मैं भी उसके साथ हँसी और खिल गई
उजली चदरिया बनूँ बुनकर से मिल गई
लो चाँदनी भी मैं हूँ...
औ.....मै ही धूप हूँ ।
तामसी निशा का भी...
उजला सा रूप हूँ ।
जल ही उठेगे दीप , गाओ , दीप राग हूँ
मान लो दिनकर के भी मैं मन की आग हूँ
मुझसे विलग सुख सृष्टि की अवधारणा कहाँ !
संजीवनी समाज की.....खिलती सतत यहाँ
स्वप्न हो सृजन... कि ..... अधूरे रहोगे तुम ,
साथ मेरा हो सदा................पूरे रहोगे तुम।
कामना इतनी करूँ.... कि दीप्त हों दिवाकराः
मन मेरा न कह उठे "रमन्ते अत्र निशाचराः"
"..सभ्य ,सुसंस्कृत और सुंदर समाज के निर्माण की नींव बन जायें...महिला दिवस के अवसर पर हार्दिक शुभ कामनायें "
.......डॉ0ज्योत्स्ना शर्मा..........जल ही उठेगे दीप , गाओ , दीप राग हूँ
मान लो दिनकर के भी मैं मन की आग हूँ
मुझसे विलग सुख सृष्टि की अवधारणा कहाँ !
संजीवनी समाज की.....खिलती सतत यहाँ
स्वप्न हो सृजन... कि ..... अधूरे रहोगे तुम ,
साथ मेरा हो सदा................पूरे रहोगे तुम।
कामना इतनी करूँ.... कि दीप्त हों दिवाकराः
मन मेरा न कह उठे "रमन्ते अत्र निशाचराः"
"..सभ्य ,सुसंस्कृत और सुंदर समाज के निर्माण की नींव बन जायें...महिला दिवस के अवसर पर हार्दिक शुभ कामनायें "
इस कविता का माधुर्य हर शब्द में जैसे घुल गया हो । ज्योत्स्ना जी का शब्द-चयन, भावों की अनूठी मणिमाला पाठक का मन अनायास ही भिगो जाती है ।
ReplyDeleteहृदय से आभारी हूँ भाई जी ! आपका सहज स्नेह एवम प्रेरणा मेरी अनमोल निधि हैं ...सदा बनाये रखियेगा ।
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
जीवन और दुनिया का सच, जिसे एक सिरे से खारिज किया जाता है; पर सार्वभौमिक सत्य है...
ReplyDeleteस्वप्न हो सृजन... कि ..... अधूरे रहोगे तुम ,
साथ मेरा हो सदा................पूरे रहोगे तुम।
बहुत भावपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.
मेरे भावों से समरस .ऽआपकी प्रतिक्रिया सुखकर है ...बहुत आभार आपका !!
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना