Wednesday, 13 November 2013

बाल साहित्य विशेषांक से

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 
यादे बचपन की…जब आती हैं ...कविता बन जाती हैं, कुछ इस तरह 

मेरी रचनाएँ ..'अभिनव इमरोज़ ' के बाल साहित्य विशेषांक से ...

प्यारा भैया 
भैया बहुत सताये मुझको 
चोटी खींच रुलाये मुझको 
गुड़िया मेरी छीने भागे 
पीछे खूब भगाये मुझको 

मेरी पुस्तक रंग उसके हैं 
खेलें कैसे ढंग उसके हैं 
क्या खाना है क्या पहनाऊँ
नये नये हुड़दंग उसके हैं 

फिर भी तुमको क्या बतलाऊँ
प्यार उसी पर आये मुझको 
मेरा प्यारा न्यारा भैया 
कभी दूर ना भाये मुझको


2-

प्यारी गौरैया 



ओ मेरी प्यारी गौरैया 
रोज़ मेरी खिड़की पर करती 
फुदक फुदक कर ताता थैया 

कितनी सुबह सुबह जग जाती 
तुम मीठे सुर साज़ सजाती
बजे अलार्म भले न मेरा 
मुझे समय से आन जगाती
तुम ना हो तो फिर पक्का है 
कान खिंचें और मारे मैया 

छुट्टी के दिन सोने देना 
सुख सपनों में खोने देना 
देखो बात न बढ़ने पाये 
बहुत देर मत होने देना 
दाना पानी दूँगी तुमको 
मान करूँगी सोन चिरैया !

 ~~**~~

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार को (14-11-2013) ऐसा होता तो ऐसा होता ( चर्चा - 1429 ) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चाचा नेहरू के जन्मदिवस बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आपका सतत प्रोत्साहन मेरे लेखन को नई ऊर्जा देता है ..इस स्नेह भाव के लिए मैं आपकी हृदय से आभारी हूँ |
      सादर !

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  2. प्यारा भैया -

    भैया बहुत सताये मुझको


    चोटी खींच रुलाये मुझको

    गुड़िया मेरी छीने भागे

    पीछे खूब भगाये मुझको


    मेरी पुस्तक रंग उसके हैं

    खेलें कैसे ढंग उसके हैं

    क्या खाना है क्या पहनाऊँ

    नये नये हुड़दंग उसके हैं


    फिर भी तुमको क्या बतलाऊँ

    प्यार उसी पर आये मुझको

    सुन्दर रचना है शेष बाल रचनाएं भी उत्कृष्ट कोटि की हैं।

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    1. सरस प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित करने के लिए बहुत आभार आपका |
      सादर !

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