डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
और सज़ा देनी है पहले भीतर के ग़द्दारों को
नाहक छेड़ करें ना दम्भी ,दूध छठी का याद करें
पाठ पढ़ाना है कुछ ऐसा उन कुटिलों ,मक्कारों को।।1
अभिलाषा है आज लेखनी,सरस मधुर
रसधार बने
वक़्त पड़े तो खूब गरजती वीरों की हुंकार बने
करके अर्चन अरिमुण्डों से जननी का शृंगार करें
भीतर बाहर के घाती को दोधारी तलवार बने ।।2
पूरे करने हैं जननी के, सपने, सब अरमान हमें
उसकी ख़ुशियों पर करने हैं अपने सुख क़ुर्बान
हमें
बोस,जवाहर,गाँधी बिस्मिल नाज बहुत हमको तुमपर
सिंह भगत ,आज़ाद ,याद हैं वीरों के बलिदान हमें।3
स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-08-2016) को "एक गुलाम आजाद-एक आजाद गुलाम" (चर्चा अंक-2436) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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७० वें स्वतन्त्रता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteस्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
करके अर्चन अरिमुण्डों से जननी का शृंगार करें
ReplyDeleteभीतर बाहर के घाती को दोधारी तलवार बने ।।2
यही करना है और कर भी रहे हैं हमारे जवान। जोशीली प्रस्तुति।
स्वतंत्रता दिवस का हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeletehruday se aabhaar aadaraniyaa !
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