डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
ताँका
1
बुहार दिए
निराशा के पत्रक
जा पतझर !
सुधियों की वीणा है
पाया रस निर्झर !
2
तुम सूरज !
मैं रससिक्त धरा
खूब तपा लो,
मेरे मन यादों का
गुलमोहर झरा !
3
अरी पवन !
ली खुशबू उधार
कली-फूल से
ज़रा कर तो प्यार
न कर ऐसे वार !
4
बीज खुशी के
मैं बो आई थी कल
उग आएँगे
कुछ पौधे प्यारे-से
प्रेम-रस-भीने से !
~~~~****~~~~
बहुत भावपूर्ण और सुंदर ताँका
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण और सुंदर ताँका
ReplyDeletebahut-bahut aabhaar aapakaa !
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ReplyDeleteतुम सूरज !
मैं रससिक्त धरा
खूब तपा लो,
मेरे मन यादों का
गुलमोहर झरा !