निवेदन !
राजस्थान में
जन्मी ,पली-बढीं ,हिन्दी एवं इतिहास
में स्नातकोत्तर स्तरतक शिक्षा प्राप्त सुश्री अनिता मंडा
अपने सुरुचि पूर्ण लेखन से साहित्य-साधना में संलग्न हैं।आज उनकी एक ऐसी ही रचना
प्रस्तुत है।आशा करती हूँ आपका स्नेह-आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करेगी |
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
सृष्टि-सृजन
एक ख़ामोशी की
नदी
जमकर
बन
गई हिम शिखर
तुम्हारे
भीतर
एक
आँच
सुलगा
रही है
मुझे
भी सदियों से
इस
आँच को छुपाए
बनते
हुए राख
क्षण-प्रतिक्षण
तड़प-
झुलस
नहीं
बुझने दी आँच।
इसी
प्रतीक्षा में
कि
एक दिन
ये
आँच
पिघला
देगी हिमशिखर
मुक्त्त
हो जाओगे तुम
हृदय
-भार से।
पर यह आभास रहे
हिमशिखर
आँच के
इतना
ही पास रहे
बहे
नदी बनकर
सैलाब
बनकर नहीं।
सृष्टि-सृजन
हो बाधित
यह
मुझे स्वीकार नहीं।
खिले
सृष्टि
खिले
वसन्त
नदी-
नीर लेकर
खिले
धरा।
एक
टहनी जिस पर
खिले
हैं स्मृति -पुष्प
आओ
हिलाएँ मिलकर
चुन
लें फूल
आधे
तुम्हारे
आधे
मेरे।
धरती
पर पाँव जमाएँ
छुएँ
आसमाँ के तारे
पा लें पूर्णता
उस
समग्र का अंश
अनुभूत
हमें
करें
निर्मित संतुलन
प्रकृति के साथ।
-0-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-06-2015) को "उलझे हुए शब्द-ज़रूरी तो नहीं" { चर्चा - 2004 } पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
charcha manch par sthaan dene ke liye bahut aabhar aapakaa !
Deletesaadar
jyotsna sharma
ख़ामोशी की नदी जब जमकर हिमशिखर बन जायेगी...तो फिर कहाँ पिघलेगी..? ...यदि पिघली तो सैलाब ही बनेगी ....
ReplyDeleteसुंदर कविता सृजन हेतु अनीता मंडा जी हार्दिक बधाई!
इसे साझा करने हेतु ज्योत्स्ना जी का हार्दिक आभार!
~सादर
अनिता ललित
वाह अनीता मंड़ा जी हार्दिक बधाई | सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव अनिता जी |
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeleteअनिता जी शुभकामनाएँ!
ज्योत्स्ना जी धन्यवाद !!
Anita ji , Savita ji , Asha Saxena ji , Madan Mohan ji evam Amit ji ...protsahan bharee upasthiti ke liye bahut bahut aabhaar !
ReplyDeletesaadar
jyotsna sharma
Behad khoobsurat
ReplyDeleteहार्दिक बधाई सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....बहुत बधाई!
ReplyDeleteवाह, बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति, सुंदर कविता, आभार... अनिता जी को बधाई!
ReplyDeleteaadaraneey Himakar Shyam ji , Krishna ji , Ramesh Gautam ji , Simmi ji prerak upasthiti ke liye meri aur Anita Manda ji ki or se haardik dhanyawaad !
ReplyDeletesaadar
jyotsna sharma
आप सभी का दिल से आभार।
ReplyDeleteएक टहनी जिस पर
ReplyDeleteखिले हैं स्मृति -पुष्प
आओ हिलाएँ मिलकर
चुन लें फूल
आधे तुम्हारे
आधे मेरे।
Bahut sundar lagi ye panktiyan meri badhai...
बहुत आभार भावना जी !
Deleteप्रकृति के साथ संतुलनबनाना बहुत ही जरुरी है।सुखा और सैलाब प्रकृति असंतुलन का ही परिणाम है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए बधाई
प्रकृति के साथ संतुलनबनाना बहुत ही जरुरी है।सुखा और सैलाब प्रकृति असंतुलन का ही परिणाम है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए बधाई
प्रकृति के साथ संतुलनबनाना बहुत ही जरुरी है।सुखा और सैलाब प्रकृति असंतुलन का ही परिणाम है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए बधाई
बहुत सुन्दर, सार्थक पंक्तियाँ...हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ...बहुत खूब ।
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