जीवन खेला राम का !
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
जीवन खेला राम का ,रंगमंच संसार
और निभाने हैं हमें , अलग-अलग किरदार
अलग-अलग किरदार ,खेल है मन से खेलो
पल-पल बदलो रूप , मिले जो सुख-दुख झेलो
मृग-मरीचिका हन्त ! रहेगा प्यासा ही मन
कर अभिनय जीवन्त ,मात्र खेला है जीवन ।।
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चित्र गूगल से साभार
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteसच में जीवन एक खेल ही है और यह हम पर निर्भर है की हम इसे कैसे खेलते हैं..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-06-2015) को "भटकते शब्द-ख्वाहिश अपने दिल की" (चर्चा अंक-1997) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeletehruday se dhanyawaad aapakaa !
Deletesaadar
jyotsna sharma
achchi rachna bahin ji jeevan ka pura darshan char panktiyon me bahut khoob
ReplyDeletebahut aabhaar aapakaa !
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