डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
सुधियाँ भी पावन हुईं, मन सुरभित सुख धाम |
पितृ-चरण करूँ वंदना ,सहज, सरल, निष्काम ||
जीवन दर्शन हैं पिता ,चिंतन का आधार |
नित-नित नयनों में रचा ,स्वप्नों का संसार ||
छाया शुभ-आशिष रहे ,कभी कड़ी सी धूप |
विपत हरें ,नित हित करें ,पिता परम-प्रभु रूप ||
शीश चुनरिया सीख की ,मन में मधुरिम गीत |
बाबुल तेरी लाडली , कभी न भूले रीत ||
माँ तो शीतल छाँव सी ,पिता मूल आधार |
सुन्दर ,सुखी समाज का ,संबल है परिवार ||
माँ तो शीतल छाँव सी ,पिता मूल आधार |
सुन्दर ,सुखी समाज का ,संबल है परिवार ||
अब मिलना मुमकिन नहीं ,मन को लूँ समझाय |
बिटिया हूँ ,कैसे भला , याद तेरी न आय .....और .....
दो नैनों की आस थी , दो नैनों का नूर ,
बिटिया आँगन की कली ,भेज दिया क्यूँ दूर |
भेज दिया क्यूँ दूर , खबर लेते रहना था ,
सुनना था कुछ हाल,हृदय का ,कुछ कहना था |
छोड़ गए फिर याद , सरस सुन्दर बैनों की ,
बाबुल, बाक़ी चाह , दरश की, दो नैनों की ||...
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आहा उत्तम अति उत्तम आनंद परम आनंद निःशब्द कर दिया आपने मन मोह लिया आपने ऐसी सुन्दर रचना रच कर. मेरी ओर से भूरि भूरि बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपकी यह उत्तम रचना कल रविवार को ब्लॉग प्रसारण के विशेष रचना कोना पर भी लिंक की गई है. पधार कर अनुग्रहीत करें.
मेरी पंक्तिया आपको पसंद आईं और आपने इतना सम्मान दिया इसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ आपकी...बहुत धन्यवाद के साथ ..
ReplyDeleteज्योत्स्ना शर्मा
सच पिता जी ऐसे ही होते हैं
ReplyDeleteमन के भीतर पनपती सुंदर और सच्ची अनुभूति
पिता को नमन
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद ...प्रेरक उपस्थिति के लिए ज्योति जी
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
कोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखती हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
हार्दिक धन्यवाद संजय जी !
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा