Wednesday, 5 June 2013

पर्यावरण दिवस पर ....

धरती की चूनर .....डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 



कुपित रवि
किरणें करें वार
सहमी धरा |१

कराहें कभी
वन ,वृक्ष ,कलियाँ
रोती है धरा |२

बादल धुआँ
घुटती सी साँसें हैं
व्याकुल धरा |३

न घोलो विष
जल ,जीव व्याकुल
है प्यासी धरा |४

व्यथा कथाएँ
धरा जब सुनाए
सिन्धु उन्मन |५

नाचेगा मोर ?
बचा ही न जंगल
कैसी ये भोर ?६

अक्षत रहे
धरती की चूनर
ओजोन पर्त |७

अतिवृष्टियाँ
खुद भेंट अपनी
अनावृष्टियाँ|८

गूँजीं थीं कभी
वो पावन ऋचाएँ
गुनगुनाएँ |९

संभल जाएँ
मधुमय बनाएँ
धरा सजाएँ |१०

5 comments:

  1. आपकी यह रचना कल मंगलवार (बृहस्पतिवार (06-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए ह्रदय से आभार ..अरुन शर्मा जी

      ज्योत्स्ना शर्मा

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  2. Replies
    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए ह्रदय से आभार ..Surinder Singh जी

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  3. इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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