धरती की चूनर .....डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
कुपित रवि
किरणें करें वार
सहमी धरा |१
कराहें कभी
वन ,वृक्ष ,कलियाँ
रोती है धरा |२
बादल धुआँ
घुटती सी साँसें हैं
व्याकुल धरा |३
न घोलो विष
जल ,जीव व्याकुल
है प्यासी धरा |४
व्यथा कथाएँ
धरा जब सुनाए
सिन्धु उन्मन |५
नाचेगा मोर ?
बचा ही न जंगल
कैसी ये भोर ?६
अक्षत रहे
धरती की चूनर
ओजोन पर्त |७
अतिवृष्टियाँ
खुद भेंट अपनी
अनावृष्टियाँ|८
गूँजीं थीं कभी
वो पावन ऋचाएँ
गुनगुनाएँ |९
संभल जाएँ
मधुमय बनाएँ
धरा सजाएँ |१०
आपकी यह रचना कल मंगलवार (बृहस्पतिवार (06-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteइस स्नेह और सम्मान के लिए ह्रदय से आभार ..अरुन शर्मा जी
Deleteज्योत्स्ना शर्मा
Nice Poetry
ReplyDeleteइस स्नेह और सम्मान के लिए ह्रदय से आभार ..Surinder Singh जी
Deleteइन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
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