Thursday, 27 June 2013

चाहत का घर .....

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

   हर एक मन की पीड़ा बस पीड़ा देती है .....हरेक नयन का आँसू मुझे रुलाता है ....चार नयन के आँसू पौंछे ...मुस्काने दे ...तब जाकर ये दिल मेरा भी मुस्काता है ......विगत कुछ दिनों के  घटना-चक्र ने व्यथित किया ...मन अवाक् है ...लेकिन कलम कह रही है ........
1
कभी तिनका -तिनका जो नीड़ जोड़ा ,
वहीं लिख दिया रब ने क्यूँ कर बिछोड़ा ।
न सैलाब रोका ...........न बाँह थामी ;
सज़ा देते ,...करते मगर माफ़ थोड़ा ।।
2
कई रोज़ से दिल परेशान है ,
कोई दर्द जैसे.. ..मेहमान है  ।
जो नज़दीक है ,मुस्कुराता रहा ;
कहें क्या वही हमसे अनजान है ।।
3
फूलों का शूलों में जैसे बसर ,
अँधेरों  में होती है जैसे सहर ।
मुमकिन है ये भी जो चाहो ज़रा ;
नफ़रत की नगरी में चाहत का घर ।।
4
ग़म भूल जाने की बातें किया कर ,
बस मुस्कुराने की बातें किया कर ।
खुशियाँ कभी तो कभी जख्म होंगें ;
पर  तू समय की सुईं  से सिया कर ।।

समय के दिए घाव समय ही भरता है ...लेकिन अभी ...आपद्ग्रस्त उत्तराखंड में राहत सामग्री यथास्थान और यथासमय पहुँचे ऐसी प्रार्थनाओं के साथ ........

ज्योत्स्ना शर्मा

10 comments:

  1. ज्योत्स्ना जी आपके सारे मुक्तक बहुत गहराई और जीवन की सच्चाई लिए हुए हैं; लेकिन मुक्तक का सन्देश बहुत बड़ा है ।एक -एक शब्द प्रेरक है-
    4
    ग़म भूल जाने की बातें किया कर ,
    बस मुस्कुराने की बातें किया कर ।
    खुशियाँ कभी तो कभी जख्म होंगें ;
    पर तू समय की सुईं से सिया कर ।।

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  2. ह्रदय से आभार आपका !
    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  3. प्रशंसनीय रचना ज्योत्स्ना जी - बधाई

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    1. ह्रदय से धन्यवाद संजय जी !

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  4. Replies
    1. ह्रदय से आभार आशा जी !

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  5. मन को छूती हुई सुंदर अनुभूति
    बेहतरीन
    बधाई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका !

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