Tuesday 6 April 2021

158-किरणों की आहट

 


क्षणिकाएँ : डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

1
हैरान जंगल !
सालों-साल तो
बाज और भेड़ियों ने
अपना कानून चलाया
गिद्धों ने नोच-नोच खाया
इलज़ाम मोरों पर आया । 


2
अपमार्जक !
उदास हैं गिद्ध
कुछ कह नहीं पाते हैं !
कह सकते तो कहते-
ये मनुष्य
इलज़ाम हम पर क्यों
लगाते हैं
हमने कहाँ मारा
ज़िंदा प्राणियों को, 
हम तो मुर्दों को खाते हैं ! 


3
गरीबी, भूख,
फाक़ाकशी पर
क़ौम के आका
व्यवस्था से
इस क़दर गुस्सा खा गए
कि, बच्चों के हाथों में
बन्दूकें थमा गए ।


4
लो हो गया इन्साफ !
निर्दोष बरी भँवरा ,
उसका कोई दोष
नहीं पाया गया ।
धूर्त कलियों द्वारा
अपनी महक से
खुद ही लुभाया गया ,
पास बुलाया गया ।


5
कितनी अच्छी है वो !
मैं उससे .....
देर तक बतियाती रही
....और प्यारी तन्हाई
मेरी हाँ मे हाँ मिलाती रही ।


6
सुखद होता है
मित्रों से मिलना !
इसका
प्रमाण मिल गया
जब
किरणों की आहट से
फूलों का
चेहरा खिल गया....... 😊
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
( चित्र गूगल से साभार)

23 comments:


  1. सुखद होता है
    मित्रों से मिलना !
    इसका
    प्रमाण मिल गया
    जब
    किरणों की आहट से
    फूलों का
    चेहरा खिल गया ....शुभ संध्या 🙏

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. बहुत अच्छी क्षणिकाएं हैं ये । विशेष रूप से अंतिम दो क्षणिकाओं ने तो मेरा दिल ही जीत लिया ।

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  4. बहुत सार्थक और सुन्दर क्षणिकाएँ।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  6. वाह! आनंद आ गया। सुंदर और चुटीली।

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  7. वाह! बेहतरीन ।

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  8. हैरान जंगल !
    सालों-साल तो
    बाज और भेड़ियों ने
    अपना कानून चलाया
    गिद्धों ने नोच-नोच खाया
    इलज़ाम मोरों पर आया ।

    ये क्षणिका आज की राजनीति से प्रेरित लग रही है ,क्यों कि मुझे इसी संदर्भ में सटीक लग रही है । ज़बरदस्त तंज़ है ।


    2
    अपमार्जक !
    उदास हैं गिद्ध
    कुछ कह नहीं पाते हैं !
    कह सकते तो कहते-
    ये मनुष्य
    इलज़ाम हम पर क्यों
    लगाते हैं
    हमने कहाँ मारा
    ज़िंदा प्राणियों को,
    हम तो मुर्दों को खाते हैं !
    इंसान की फितरत ही है कि अपने दोष दूसरों पर आरोपित कर देने की । सटीक कटाक्ष ।

    3
    गरीबी, भूख,
    फाक़ाकशी पर
    क़ौम के आका
    व्यवस्था से
    इस क़दर गुस्सा खा गए
    कि, बच्चों के हाथों में
    बन्दूकें थमा गए ।
    कौम के आका व्यवस्था ही नहीं कर पाए तो भुखमरी से बचने के लिए थाम लीं बंदूकें ।विचारणीय ।


    4
    लो हो गया इन्साफ !
    निर्दोष बरी भँवरा ,
    उसका कोई दोष
    नहीं पाया गया ।
    धूर्त कलियों द्वारा
    अपनी महक से
    खुद ही लुभाया गया ,
    पास बुलाया गया ।
    गंभीर मुद्दे पर सटीक लिखा है । दोष लड़कों का कहाँ होता है ? वो तो लड़कियाँ ही भड़काती हैं और बलात्कार की घटनाएँ जन्म लेती हैं ।भरपूर व्यंग्य हमारी न्याय व्यवस्था पर


    5
    कितनी अच्छी है वो !
    मैं उससे .....
    देर तक बतियाती रही
    ....और प्यारी तन्हाई
    मेरी हाँ मे हाँ मिलाती रही ।

    मैं और मेरी तन्हाई ... बहुत खूब ।


    6
    सुखद होता है
    मित्रों से मिलना !
    इसका
    प्रमाण मिल गया
    जब
    किरणों की आहट से
    फूलों का
    चेहरा खिल गया.....

    अहा , क्या बात । मित्रों से मिल चेहरे खिल ही जाते हैं ।
    सभी क्षणिकाएँ एक से बढ़ कर एक । लेकिन 4 नंबर वाली बहुत मारक लिखी है ।

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    1. क्षणिकाओं के मर्म तक जाती समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार आपका 🙏

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  9. ज्योत्सना जी ,सुंदर, संदेशपूर्ण क्षणिकाओं को पढ़कर आनंद आ गया,सादर शुभकामनाएं ।

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    1. हृदय से आभारी हूँ जिज्ञासा जी 🌷🙏

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  10. ज्योत्सना जी समय मिले तो मेरे गीतों के ब्लॉग पर भ्रमण करें,लोकगीतो का आनंद मिलेगा आपको ,सादर नमन ।

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    1. अवश्य सखी , लोकगीतों का अपना अलग आनन्द है !

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  11. वाह! सुंदर
    एक से बढ़कर एक

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    1. बहुत-बहुत आभार डॉ.पूर्वा शर्मा जी 🌷🙏

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  12. सुंदर क्षणिकाएं।
    बधाई

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  13. हृदय से आभार आपका 🌷🙏

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