Saturday 23 October 2021

168- जीवन पथ पर !




1.

वही बस वही तो उजालों में आए
कि, जिसने अँधेरों में दीपक जलाए ।

ये रस्ता कहाँ से कहाँ जा रहा है 
जिसे खुद पता हो वही तो बताए ।

गिरा बिजलियाँ आशियाने पे मेरे
वो पूछें हुआ क्या है बैठे-बिठाए ।

इरादों का उनके पता ही चला जब 
रुलाकरके हमको वो खुद मुसकुराए।

करे माफ रब भी सुबह का जो भूला 
ढले शाम जब अपने घर लौट आए 

सरल है बहुत बात पर बात कहना 
सही है तभी, काम करके दिखाए ।

2.

नभ को रंग बदलते देखा 
सूरज उगते-ढलते देखा ।

जीवन-पथ पर पथिकजनों को 
गिरते और सँभलते देखा ।

जिसका कोई मोल नहीं ,वह 
सिक्का खूब उछलते देखा ।

उजले-उजले परिधानों में 
अँधियारों को पलते देखा ।

जिनके सिर औ' पैर नहीं थे
उन बातों को चलते देखा ।

बेबस आँखों के दरिया में 
इक तूफान मचलते देखा।

तनिक ताप से हिमखंडों को 
धीरे-धीरे गलते देखा ।



डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

 





12 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना रविवार २४ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर नमस्कार श्वेता जी,
      रचना को 'पाँच लिंकों का आनन्द' में स्थान देने के लिए हृदय से आभारी हूँ 🙏

      Delete
  2. Replies
    1. बाहर-बहुत आभार आदरणीय 🙏

      Delete
  3. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  4. दोनों ही ग़ज़लें क़ाबिल-ए-दाद हैं। ख़ास तौर पर पहली ग़ज़ल तो लाजवाब है।

    ReplyDelete
  5. बहुत-बहुत आभार आपका 💐🙏

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  7. हृदय से आभारी हूँ अनुराधा चौहान जी 💐🙏

    ReplyDelete
  8. वाह... क्या कहने शानदार सृजन के लिए हार्दिक बधाई सखी🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹👌👌👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार सुनीता जी 🌷🙏🌷

      Delete