Friday 6 May 2022

173- चँहु दिशि घूमे घाम


                     ( चित्र गूगल से साभार)


'गर्मी के दोहे' आपकी सेवा में - 


गाँव, शहर , खलिहान में , चँहु दिशि घूमे घाम ।

अलसाई दोपहर को , रुचे न कोई काम ।।1


रुत गरमी की आ गई, लिए अगन-सा रूप ।

भोर हुए भटकी फिरे, चटख सुनहरी धूप।।2


सूरज के तेवर कड़े, बरसाता है आग ।

पर मुस्काए गुलमोहर , पहन केसरी पाग ।।3


खूब रसीली लीचियाँ, बर्फ मलाईदार ।

खरबूजा , तरबूज हैं , गरमी के उपहार ।।4


लगें बताशा अम्बियाँ, बड़ी जायकेदार ।

भरी बाल्टियाँ ला धरीं , दादा जी ने द्वार ।।5


हरा पुदीना , मिर्च की , चटनी के क्या दाम ।

पना बना अनमोल है , खट्टे-मीठे आम ।।6


अम्मा ! घर में भर गई , महक मसालेदार ।

मुँह में पानी ला रहा , बरनी भरा अचार ।।7


बड़ी बेरहम ये गरम , हवा उड़ाती धूल 

मुरझाया यूँ ही झरा, विरही मन का फूल ।।8


तपता अम्बर , हो गई , धरती भी बेहाल ।

सूनी पगडंडी ,डगर , किसे सुनाएँ हाल ।।9


लथपथ देह किसान की , बहा स्वेद भरपूर ।

चटकी छाती खेत की , बादल कोसों दूर ।।10


दिनकर निकला काम पर , करे न कोई बात ।

कितने मुश्किल से कटी , यह गरमी की रात ।।11


उमड़-उमड़ कर जो कभी, खूब सींचती प्यार ।

सूख-सूख नाला हुई , वह नदिया की धार ।।12


ए.सी. , पंखा, फ्रिज थके , करते हैं फरियाद ।

घड़ा , सुराही , बीजणा, करो इन्हें भी याद ।।13


टी.वी.चैनल पर छिड़ी, बहस , बरसती आग।

कैसे हों ठंडे भला, भड़के गर्म दिमाग ।।14


सकल विश्व को ध्वंस के , मुख में रहे धकेल ।

विधि के नियत विधान में , मनुज करो मत खेल  ।।15


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

( प्रकाशित- 'शब्द सृष्टि' मई, 2022)

16 comments:

  1. चँहु दिशि घूमे घाम .......

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०७-०५-२०२२ ) को
    'सूरज के तेवर कड़े'(चर्चा अंक-४४२२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका , चर्चा अंक में स्थान पाकर धन्य हूँ 🙏

      Delete
  3. बेहतरीन सृजन।

    ReplyDelete
  4. दिल से शुक्रिया अनुराधा जी 🙏

    ReplyDelete
  5. सुंदर रचना

    ReplyDelete
  6. डॉ विभा नायक7 May 2022 at 08:39

    Wah bahut sundar🌷

    ReplyDelete
  7. बहुत अच्छे और सुंदर दोहे

    ReplyDelete
  8. टी.वी.चैनल पर छिड़ी, बहस , बरसती आग।

    कैसे हों ठंडे भला, भड़के गर्म दिमाग ।।
    ...सुंदर, सार्थक दोहे ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभार जिज्ञासा जी 🙏

      Delete
  9. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

    ReplyDelete