Thursday, 26 December 2024

186-छाया है कोहरा घना !




  (चित्र गूगल से साभार )


छाया है कोहरा घना
मन है अनमना !

चमकीं हैंं लाइटें
गाड़ियों का शोर है
जाने दुपहरिया है ?
साँझ है कि भोर है  ?
धुंध का वितान-सा तना
मन है अनमना !

देखो नज़दीकियाँ  भी
आज हुईं ओझल
सँझा को सांसे भी
लगतीं हैं बोझल
मौसम भी दे यातना
मन है अनमना !

धीरे-धीरे घट जाए
फिर दिन की पीर
एक किरन आ जाए
कुहरे को चीर
इतनी सी है चाहना 
न रहे अनमना  !

छाया है कोहरा घना
मन है अनमना ।।

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा