Thursday, 26 December 2024

186-छाया है कोहरा घना !




  (चित्र गूगल से साभार )


छाया है कोहरा घना
मन है अनमना !

चमकीं हैंं लाइटें
गाड़ियों का शोर है
जाने दुपहरिया है ?
साँझ है कि भोर है  ?
धुंध का वितान-सा तना
मन है अनमना !

देखो नज़दीकियाँ  भी
आज हुईं ओझल
सँझा को सांसे भी
लगतीं हैं बोझल
मौसम भी दे यातना
मन है अनमना !

धीरे-धीरे घट जाए
फिर दिन की पीर
एक किरन आ जाए
कुहरे को चीर
इतनी सी है चाहना 
न रहे अनमना  !

छाया है कोहरा घना
मन है अनमना ।।

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

3 comments:


  1. धीरे-धीरे घट जाए
    फिर दिन की पीर
    एक किरन आ जाए
    कुहरे को चीर
    इतनी सी है चाहना
    न रहे अनमना !

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  2. बहुत अच्छी रचना।
    पाखियों की
    चहचहाहट
    उघँती,उबासियाँ
    ओस में डूबी
    सुबह को होश आये
    धुंध की परतें हटें
    भ्रम के कुंठित
    जाल टूटे।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. सुंदर सुहानी सुबह
    सादर वंदन

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