Thursday 27 February 2014

दो रचनाएँ .....

एक 

आवाजाही जारी है
 ,
फिर हंगामा तारी है 

जाने कैसा रोग लगा ,
जाने क्या बीमारी है 


नस -नस में घोटाला है ,
रग-रग में मक्कारी है 


क्या जाना क्या अनजाना
 ,
पंजे में ऐयारी है
 


अंधे को अंधा कहते
 ,

अब तो विपदा भारी है 

बुझे दिए में  तेल भरो
 ,
इसमें क्या  हुशियारी है 

काल कलम से पूछ रहा
 ,
तेरी किससे यारी है 

दो 

जब से वो मशहूर हुए ,
थोड़ा -सा मग़रूर हुए ।

आसमान से की बातें ,
धरती से दूर हुए ।

जाम मिला जब सत्ता का ,
खूब नशे में चूर हुए ।

गैरों को अपनाते क्या ,
अपनों से भी दूर हुए ।

चुप रहना था, बोल उठे ,
आदत से मजबूर  हुए ।

नूरे इलाही छोड़ गया ,
यूँ आखिर बेनूर हुए ।
-0-

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

10 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 01/03/2014 को "सवालों से गुजरना जानते हैं" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1538 पर.

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    1. बहुत आभार आपका |
      सादर !

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  2. Replies
    1. बहुत आभार आपका |

      सादर !

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  3. सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था पर चोट करती पंक्तियाँ... दोनों कविता के भाव बेहद उम्दा हैं...

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    1. बहुत आभार आपका |

      सादर !

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  4. राजनीतिक व्यवस्था पर चोट.........बेहद उम्दा

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    1. बहुत आभार आपका |

      सादर !

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  5. सामाजिक बातों का सुन्दर सरोकार है इन गज़लों में ... बहुत खूब ...

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    1. बहुत आभार आपका |
      सादर !

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