Wednesday 23 September 2015

दो कविताएँ !



अनिता मंडा


रूह
१ 
आग इसे जला नहीं सकती
पानी गला नहीं सकता
हवा इसे सुखा नहीं सकती
पर सदा छुअन से परे
कब रह पाती है रूह
दबती तो है यादों के बोझ से
काँपती तो है काली
अँधेरी परछाइयों से
तोड़ते तो हैं दुःख के
पत्थर इसे
बंधती तो है
मोह के धागों से
कहाँ रह पाती है
रूह आज़ाद।

 २ 

सज़दे में है या गुनाह में है
दिल तू ही बता किस राह में है...

फिर एक छनाका होने को है
शीशा पत्थर की पनाह में है...

अब रूह काँपती है इस चमन की
कली इक खिलने की चाह में है...

यूँ खेला न करो टूटे दिल से
कुछ तो असर उसकी आह में है...

हमसे सच कह दिया करो हुजूर
कुछ ना रखा झूठी सी वाह में है...

छुपा ना रहेगा कुछ भी उससे
अब हर कदम उसकी निगाह में है...

~~~~~~~****~~~~~~~

(चित्र गूगल से साभार)

Saturday 12 September 2015

हिंदी रूप-अनूप !




डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
कहीं रहूँ सुखकर बहुत , सारा ही परिवेश ।
मधुरिम हिन्दी  गीत जब , बजते देश-विदेश ।।1

तुच्छ बहुत वह जन बड़ा”,निन्दित उसका ज्ञान ।
अपनी हिन्दी  का नहीं ,जिसके मन सम्मान ।।

करना सीखा है सदा
,सबका ही सम्मान ।
लेकिन क्यों खोनी भला, खुद अपनी पहचान ।।3

कटीं कभी की बेड़ियाँ ,आज़ादी  त्योहार 
फिर क्यों अपने देश में,हिन्दी  है लाचार ।।4

हिन्दी  मन की दीनता,अँग्रेजी सरताज 
कैसे मानूँ भारती,पाया पूर्ण स्वराज ।।5

कितनी मीठी बोलियाँ ,बहे मधुर रसधार।
सबको साथ सहेज कर,हो हिन्दी  विस्तार ।।6

एक राष्ट्र की अब तलक,भाषा हुई ,न वेश।
सकल विश्व समझे हमें ,जयचंदों का देश ।।7

अपने अपनाए नहीं ,ग़ैरों को जयमाल।
मन ही मन करती रही,हिन्दी  बहुत मलाल ।।8

चली प्रगति के पंथ पर , हुई बहुत अनमोल 
सजते अंतर्जाल पर , मोती जैसे बोल ।।

विविध विधा के संग सखि
पाया है विस्तार 
सहजसरल हिन्दी  हुई , वाणी का शृंगार ।।10 

शुभ्र चंद्रिका सी खिले,कभी तेजसी धूप।
कितने ग्रन्थों में सजा,हिन्दी  रूप-अनूप ।।11

ममता बरसी सूर से,तुलसी जपते राम।
वाणी अमर कबीर की,मीरा रत्न ललाम ।।12

दीपित दिनकर से हुई,देवी के मृदु गीत।
बच्चन ,पंत ,प्रसाद की,खूब निराली प्रीत ।।13

राजनीति ने डाल दी ,पाँवों में ज़ंजीर 
लेकिन हिन्दी  ने लिखी,खुद अपनी तक़दीर ।।14

आज समय करने लगा,हिन्दी  की पहचान।
सकल विश्व में गूँजते ,हिन्दी  के जयगान ।।15

संस्कृति की है वाहिका,हो सबका अभिमान।
बस इतना ,दे दीजिए,हिन्दी  में विज्ञान ।।16
          -0-
(चित्र गूगल से साभार)

Friday 4 September 2015

कृष्ण ही प्रीत है



डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 


कृष्ण ही प्रीत है,कृष्ण शृंगार है
कृष्ण राधा के जीवन का आधार है
चोर माखन का,वंशी बजैया भी है
विष भरे कालिया का नथैया भी है
काल असुरों का,मैया का प्यारा लला
द्रौपदी का सुदामा का सच्चा सखा
रास मधुबन में आकर रचाता वही 
ज्ञान गीता का रण में सुनाता वही
उसकी गाथा मधुर रस भरा गीत है
कृष्ण जीवन का हम सबके संगीत है .........
         
            अद्भुत चरित्र ...कृष्ण तो नाम ही आकर्षण का है । रास रचाता है तो योगेश्वर भी है ।गैया चराता है तो गीता का ज्ञान भी देता है । ऊखल से बँधता है तो भयंकर असुरों का संहारक भी है । ऐसे मधुर ,ऊर्जा से भरे ,चोर लेकिन विश्व भर के लाड़ले कृष्ण के जन्मदिन पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ ..मेरे लीलाधर अपनी कृपा सब पर बरसाएँ !!

-ज्योत्स्ना शर्मा

४-९-१५
(चित्र गूगल से साभार )