Saturday 3 October 2020

147- सजा अल्पना

 


बड़ी उदासी
थी कल मन में
क्यों हमने घर छोड़ दिया !

रीति कौन बताए मुझको,
संध्या गीत सुनाए मुझको
कौन पर्व है कौन तिथि पर
इतना याद दिलाए मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाईवे से जोड़ दिया .......

दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली थी कुछ बेरंगी सी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया ......

राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन, राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
अंतर्जाल ने तोड़ दिया.........

बड़ी उदासी
थी कल मन में
क्यों हमने घर छोड़ दिया !

Jyotsna Sharma 


33 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार सखी, देर से देख पाने के लिए क्षमा 🙏

      Delete
  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 🙏

      Delete
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभारी हूँ और विलम्ब हेतु क्षमाप्रार्थी भी 🙏

      Delete
  5. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
  6. हार्दिक धन्यवाद आपका

    ReplyDelete
  7. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय

      Delete
  8. मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु बहुत आभार आपका 🙏

      Delete
  9. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका 🌻🙏

      Delete
  10. भीड़ बहुत पर रहे अकेले
    कैसे जाल निराशा का फिर
    अंतर्जाल ने तोड़ दिया

    सुन्दर भावाभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदयतल से आभारी हूँ 🌻🙏

      Delete
  11. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-10-2020) को "मन आज उदास है" (चर्चा अंक-3849) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर नवगीत कोमल भावों का मधुरिम संयोजन।

    ReplyDelete
  13. तीज के मेले हम कब भूले
    सावन, राखी मन ही भीगा
    भीड़ बहुत पर रहे अकेले.
    - घर छोड़ने का पछतावा ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. दिल से शुक्रिया आपका 🌻🙏

      Delete
  14. बहुत सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
  15. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका 🙏

      Delete
  16. रीति कौन बताए मुझको,
    संध्या गीत सुनाए मुझको
    कौन पर्व है कौन तिथि पर
    इतना याद दिलाए मुझको

    बहुत उम्दा गीत ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी जी 🌹🙏

      Delete