Tuesday 22 July 2014

याद आती रही !



                                                           
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 


हसरतों का जला कारवाँ देर तक ,
देखते ही रहे हम धुआँ देर तक |

वक्त रहते बुझाईं न चिंगारियाँ ,
फिर सुलगती रहीं बस्तियाँ देर तक |

थाम ले नाखुदा यूँ भटकने न दे ,
खुद सँभलती नहीं कश्तियाँ देर तक |

क्या करें ग़म का मौसम बदलता नहीं ,
सह न पाएँगे हम तल्खियाँ देर तक |

अश्क मेरे अभी पोंछ बिटिया गई ,
याद आती रही मुझको माँ देर तक |

नाम तेरा भला आज क्या ले लिया ,

फिर महकती रही ये फिजाँ देर तक |
 



*********@@@*********
(  चित्र गूगल से साभार   )


Monday 14 July 2014

रजनी बाला !


.
                                               













यूँ ही भटकी
कहाँ खो आई बाला 
रजनी बाला !!!
 -0-
ज्योत्स्ना शर्मा 

(चित्र गूगल से साभार)

Thursday 10 July 2014