Friday 26 July 2013

हम इतना याद करें

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
सजना का गोरी से
बाँध गई मनवा 
चाहत इक डोरी से ।
2
क्या फूल यहाँ महकें 
ज़हर हवाओं में 
पंछी कैसे चहकें ।
ये रात बहुत काली 
है कितना गाफिल 
इस बगिया का माली ।
4
गुलज़ार कतारें थीं 
ख़्वाब तभी टूटा 
जब पास बहारें थीं ।
5
रुख मोड़ लिया हमने 
कल की बातों को 
कल छोड़ दिया हमने ।
6
हर दिन अरदास करूँ 
कौन यहाँकान्हा !
मैं जिसकी आस करूँ ।
7
हम इतना याद करें 
रुकतीं  ना हिचकी 
वो फिर फ़रियाद करें ।
8
क्या खौफ़ दरिंदों से?
हमको तो डर है 
घर के जयचंदों से।
9
खुशियाँ बरसें कैसे ?
श्रम की बूँदों से 
धरती उगले पैसे ।


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Saturday 13 July 2013

हर घर में उजाला हो .....

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 


 कहने को तो हर दिल की इतनी सी कहानी है .......
लब पर बस आहें हैं आँखों में पानी है .....
फिर भी दुआएँ तो करती हूँ 
,इस उम्मीद के साथ कि वो सुनेंगें जरूर ......

नूरे तबस्सुम हो, हर मुँह को निवाला हो ,
रहमत का तेरी मौला हर घर में उजाला हो।

तस्वीरों के संग, तक़दीर भी बदलेगी ,
जब ख्वाब सँवरने का, हर आँख ने पाला हो।

आसान सी राहों पर तो  क़दम बढ़ेगें  ही ,
है बात कि मुश्किल में जो खुद को सँभाला हो ।

मेरी दुआओं में तुम इतना असर रखना ,
खुद बढ़कर वो  थामे जो मारने वाला हो ॥

दिन मेरी उम्मीदों के  यूँ ही रवाँ रखना ,
फिर धूप की चादर हो या स्याह दुशाला हो।

खुशियाँ भी मनाना तुम, ऐसा ना रहे 'ज्योति',
इक रोज़ हो दीवाली इक रोज़ दिवाला हो ।
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Tuesday 2 July 2013

फूल सा खिलना .......

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा 



जान गए, बस कहा न  जाए ,
रात ,सुबह को क्या समझाए ।1 

मर्यादा  से  बाँधे  रखना ,
भाव गीत का भटक न जाए ।2

ज़रा प्यार से छूना ए दिल ,
आस का पंछी उड़ न जाए ।3 

एक खुशी है ,नेक परी- सी ,
पर मुश्किल है ,पास न आए ।4 

काँटों में उस फूल- सा खिलना ,
आह भरे ना  ,बस महकाए ।5 

जो हक है वो देना मालिक ,
दिल का क्या है रोए ,गाए ।6
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