Friday 31 July 2015

नमन गुरुवर !




सृजन की चाह लिए ,संचित उड़ेलकर ,
जगती का जैसे कि पर्जन्य ताप धोता है |
स्नेह से दुलारे कभी ,दण्ड का विधान कर ,
कुम्भकार सम नव रूप में संजोता है |
नन्हीं-नन्हीं कलियों में सुविचार सींच कर ,
राष्ट्र के निर्माण हेतु प्राण बीज बोता है ,
कृष्ण ,रामकृष्ण ,सार्थ ,दे विवेक और पार्थ ,
विज्ञ ,वन्दनीय वह गुरु धन्य होता है ||

ऐसे सद्गुरु की कृपा सबको सदा प्राप्त हो ..बारम्बार नमन और हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ ...
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

(चित्र गूगल से साभार )

Thursday 30 July 2015

सादर श्रद्धांजलि !


नम आँखों से विदाई तो दी है .....
लेकिन दिलों में आप हमेशा रहेगें !

सादर नमन के साथ
        ज्योत्स्ना शर्मा 

Sunday 26 July 2015

वंदन-अभिनन्दन !





करगिल के अमर सपूतों के प्रति शत-शत नमन के साथ
     - ज्योत्स्ना शर्मा 
मुश्किलों से जूझते हैं और रहते हैं मगन भी ,
हौसलों के पंख लेकर ,रोज छूते हैं गगन भी |
जिस तरह से कंटकों में, फूल महकाएँ चमन को ;
सींच कर खुशियाँ लहू से ,वो सजाते हैं वतन भी ||

भारत माता के चरणों का ,हम वंदन हो जाएँगे ,
ओजस्वी मन और वचन का, अभिनन्दन हो जाएँगे |
घिस-घिस महकें माथे उनके ,इतनी सी है अभिलाषा ;
नित्य मात के पूजन-अर्चन में चन्दन हो जाएँगे || 

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Tuesday 21 July 2015

एक लड़की !


प्यारी बेटियों को समर्पित ...एक कविता ......

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 


क्या कहें क्या कमाल करती है,
वक़्त से भी सवाल करती है ।१ 

बेफिकर ख़ुद ,जहान के ग़म पे,
आँख रो-रो के लाल करती है ।२ 

खींच कर कौन खुश लकीरें ये ?
हाय ! कहकर मलाल करती है।३ 


खूब हँसती है तो कभी रोकर ,
रीते आँखों के ताल करती है।४ 

चोट खाकर भी ,मीठी बातों से,
देखिए तो ! निहाल करती है।५ 

प्यार अम्माँ से बहुत ,बाबा का,
दिल से कितना ख़याल करती है।६

आज  चर्चा है इन हवाओं में 
काम वो बेमिसाल करती है ।।७

एक लड़की है दिल की बस्ती में ,
हक़ से रहती ,धमाल करती है।८ 


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(चित्र गूगल से साभार )

Friday 17 July 2015

खूब मने फिर ईद !



डॉ ज्योत्स्ना शर्मा 
नेक फ़रिश्ते से हुई, जब भीतर पहचान ।
तभी सफल पूजन-भजन ,रोज़े या रमज़ान।।१

भक्ति भाव मन में लिये ,दान,धर्म कर जाप ।
रोज़े और ज़कात से, काट जगत के पाप ।।२

सबको 'प्यारे चाँद' की , हो जाए गर दीद।
होली ,दीवाली अभी ,खूब मने फिर ईद ।।३

ज़ख़्म सिए ,उनके किए,पूरे कुछ अरमान ।
मुझको ईदी में मिलीं , ढेर दुआ ,मुस्कान ।।४

चाँद वही,सूरज वही,गगन,पवन वह नूर ।
धरती किसने बाँट दी, दिल से दिल क्यों दूर ।।५

मेहनत करते हाथ को,बाक़ी है उम्मीद ।
रोज़-रोज़ रोज़ा रहा , अब आएगी ईद ।।६

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(चित्र गूगल से साभार)


Friday 10 July 2015

बाँस-उपवन



पुनः पढ़िएगा अनिता मंडा जी को ......
                       - डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 



नूर की एक नदी जो बही
तुम्हारी आँखों से मेरी आँखों तक
सींचती हुई कितने ही सपनों को
नित्य नवीन कोंपलें फूटतीं
उग आया एक विशाल बाँस-वन
जुड़ती गई अनुभवों की गाँठें
फैलता गया हरा-भरा सुन्दर उपवन
मेरा प्रश्न नहीं तुमसे कि
क्यों छोड़ दिया तुमने सप्रयास
सींचना सुन्दर बाँस- वन को
क्यों सूखने दिया मेरी सुधियों से
भरे कोमल हृदय को?
नहीं तुमसे कोई प्रश्न;
क्योंकि नहीं ज्ञात मुझे
प्रश्न का कोई अधिकार भी
मेरा है या नहीं?
पर एक प्रार्थना है-
समय के झंझावात से
रगड़ खा सूखे बाँस
न पकड़ पायें आग;
क्योंकि आग करती है विनाश
फिर चाहे हृदय में ही हो।
आग कर देती है राख
स्मृतियों के अवशेष को।
राख की कालिख़ में
नहीं उपजती नवीनताएँ।
वक़्त की तपिश से सूख
समाप्त हो गया है हरापन
रस की एक-एक बूँद
सूख समा गई है
उसके खोल में।
अंदर से भी दिखाई पड़ता है
खोखला।
पर निरर्थक नहीं है
उसका खोखलापन।
उसके आवरण ने पीया है
रस इसीलिए शायद
उससे निकलने वाले
स्वर हैं रसमय।
एक आस बाकी है
जैसे बाँस के हृदय छिद्रों से
निकलने वाले स्वर
करते हैं संसार को आनंदित
तुम भी स्वयं को वैसा ही बनाना।
पर ध्यान रहे सूखे बाँस के
फाँस भी होती है
चुभे तो सिहरन फैल जाती है
हृदय को चीरती हुई
एड़ी से चोटी तक।
तुम कभी फाँस मत बनना
इस प्रार्थना का अधिकार
कभी नहीं छुटेगा मुझसे।

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