डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
सजना का गोरी से
बाँध गई मनवा 
चाहत इक डोरी से ।
2
क्या फूल यहाँ महकें 
ज़हर हवाओं में 
पंछी कैसे चहकें ।
3 
ये रात बहुत काली 
है कितना गाफिल 
इस बगिया का माली ।
4
गुलज़ार कतारें थीं 
ख़्वाब तभी टूटा 
जब पास बहारें थीं ।
5
रुख मोड़ लिया
हमने 
कल की बातों को 
कल छोड़ दिया हमने ।
6
हर दिन अरदास करूँ 
कौन यहाँ, कान्हा !
मैं जिसकी आस करूँ ।
7
हम इतना याद करें 
रुकतीं  ना हिचकी 
वो फिर फ़रियाद करें ।
8
क्या खौफ़ दरिंदों से?
हमको तो डर है 
घर के जयचंदों से।
9
खुशियाँ बरसें कैसे ?
श्रम की बूँदों
से 
धरती उगले पैसे ।
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