Sunday 25 August 2013

हक़ खुशियों पे सबका ......


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

एक 

हो चैन से तय मेरा सफ़र सीख रही हूँ ,
रखने हैं कदम खुद की डगर सीख रही हूँ |

हों पाँव तो ज़मीन पर बाँहों में सितारे ,
रखनी है चाँद पे भी नज़र सीख रही हूँ |

अदना सा इक सवाल है वजूद क्या मेरा ,
रचना है मुझे प्यार का घर सीख रही हूँ |

कल की अमानतें हैं मेरे पास ,रह सकूँ ,
फूलों-फला ,शादाब शज़र सीख रही हूँ |

मैं बारहा उदास थी ,उसने कहा कि खिल ,
खिलकर कहीं न जाऊँ बिखर सीख रही हूँ |

कैद थी कब से कि अब आज़ाद सी तो हूँ ,
पर बाज़ से बचने का हुनर सीख रही हूँ ||

दो 

नाम लहरों पे ऐसे......हमारा लिखा ,
ना तो कश्ती लिखी ना किनारा लिखा |

मुई मँहगाई ने....मन को मारा बहुत ,
फिर न करना है कैसे....गुज़ारा लिखा |

मुस्कुराते हुए ........हमसे पूछा किए ,
हाल कैसा खुदा ने.....तुम्हारा लिखा |


चाहतें ,दिल की मिल-जुल बसें बस्तियाँ ,
फिर ये नफ़रत का किसने शरारा लिखा |

हक़ खुशियों पे सबका.......बराबर तो है ,
किसलिए फिर ये....मेरा तुम्हारा लिखा |

छोड़ दें तेरी दुनिया ........जो हमने कहा ,
मर्सिया झट से उसने ......हमारा लिखा ||

ज्योत्स्ना शर्मा 
-----००-----


14 comments:

  1. आपकी यह पोस्ट आज के (२६ अगस्त, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - आया आया फटफटिया बुलेटिन आया पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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    1. आपके इस स्नेह सम्मान के लिए ह्रदय से आभार तुषार राज रस्तोगी जी

      सादर !!

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  2. आपकी यह रचना कल मंगलवार (27-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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    1. आपके इस स्नेह सम्मान के लिए ह्रदय से आभार अरुन शर्मा अनन्त जी

      सादर !!

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  3. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें-
    कभी यहाँ भी पधारें
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/

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    1. प्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए बहुत आभार आपका ...हार्दिक शुभ कामनाएँ

      सादर !!

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  4. waah bahut khud ...

    हो चैन से तय मेरा सफ़र सीख रही हूँ ,
    रखने हैं कदम खुद की डगर सीख रही हूँ |
    dusri rachna bhi umda .. shubhkamnaye :)

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    1. प्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए बहुत आभार आपका ...हार्दिक शुभ कामनाएँ

      सादर !!

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  5. मैं बारहा उदास थी ,उसने कहा कि खिल ,
    खिलकर कहीं न जाऊँ बिखर सीख रही हूँ ..

    दोनों गजलें बहुत शशक्त, प्रभावी ओर स्पष्ट ... आनंद आ गया ...

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    1. प्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए बहुत आभार आपका ...हार्दिक शुभ कामनाएँ

      सादर !!

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  6. 0 -हों पाँव तो ज़मीन पर बाँहों में सितारे ,
    रखनी है चाँद पे भी नज़र सीख रही हूँ |
    0-नाम लहरों पे ऐसे......हमारा लिखा ,
    ना तो कश्ती लिखी ना किनारा लिखा |
    -ज्योत्स्ना जी आपकी दोनों गज़ल बहुत अच्छी है। उपर्युक्त अशाअर्बहुत गहराई लिये हुए हैं ।

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    1. प्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए बहुत आभार आपका ...हार्दिक शुभ कामनाएँ

      सादर !!

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  7. मैं बारहा उदास थी ,उसने कहा कि खिल ,
    खिलकर कहीं न जाऊँ बिखर सीख रही हूँ ..

    .........दोनों गजलें बहुत अच्छी है।

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    1. प्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए बहुत आभार आपका ...हार्दिक शुभ कामनाएँ

      सादर !!

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