डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
दंड अभी देना है पक्का ,सरहद के हत्यारों को
उससे पहले ढूँढो
,ठोको ,भीतर के ग़द्दारों को 
दुश्मन के सब
वार भारती झेल तिरंगा ओढ़ लिया
नम नयनों से नमन
करूँ माँ ऐसे राजदुलारों को ...
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दीप कभी क्या
गर्वित हो सूरज से आँख लड़ाता है
उद्दण्ड पवन के
झोंकों से क्या पर्वत झुक जाता है 
सवा अरब हतभागी
कब तक किस किस से अपमान सहें 
चुल्लू भर पानी
सागर की लहरों को धमकाता है ....
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(चित्र गूगल से साभार ) 
 

