डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
कहीं सजे होंगे मेले , झूल 
चलो री सखी फिर से मिलें 
चलो री सखी झूलन चलें  ...
तुम तो बस गईं संगम-तीरे, 
मैं गुजराती नार
मस्त बरेली ,याद दिलाऊँ, 
वो पहले का प्यार …
कहीं हमको न जाना तुम भूल , चलो ......
दिल्ली,मुंबई,संगरूर में, 
कोई अहमदाबाद
दिल से दिल के आज जुड़े हैं 
तार गाजियाबाद…
देखो यादों के महके फूल, चलो ..........
सूरत और बड़ौदा यूँ तो , 
नहीं ज़रा भी दूर 
फिर भी जाने बात हुई क्या 
मिलने से मज़बूर ..
हसरत पर चढ़ गई धूल , चलो .......
मैया ने गुंझिया भिजवाईं 
और भैया ने साड़ी
बालकनी में  खड़ी अकेली 
देखूँ हारी-हारी…
मेरे मनवा में चुभ रहे शूल ,  चलो .....
             -०-
 

