1
पंक में जन्मे
बन नहीं पाते हैं 
पंकज सभी ।
2
न्याय की देवी
सबूतों , गवाहों के 
वश में रही ।
3
बादल छाए
टर्राते हैं दादुर 
नाचेें मयूर ।
4
चंचल नदी
सागर से मिलके
हो गई शान्त ।
5
चंचल नदी
शान्त हुई ,आखिर-
सिंधु से मिल ।
6
जाती है मिट
यायावरी बूँद की 
सिंधु से मिल ।
7
करते यहाँ 
उगते सूरज को 
नमन सभी ।
8
बही थी कभी 
भरी-भरी जल से 
प्रेम की नदी ।
9
नदी तो बही 
उसके ही किनारे 
मिले न कभी  ।
10
चला न पता
वृक्ष पर छा गई 
अमरलता ।
11
प्रभु की माया 
कहीं कड़ी सी धूप 
कहीं है छाया।
12
बड़ी , गहरी 
झील में था शिकारा 
एक , बेचारा !
13
भ्रमजाल में 
फँस, छटपटाती 
मन की मीन ।
14
खेल के ऊबा 
माँगता रहे बच्चा 
नया खिलौना  ।
15
अठखेलियाँ 
करे मीन जल में 
दूर, तड़पे।
16
दूर रहते 
पशु पहचानते 
विषाक्त पत्ते ।
17
नहीं खेवैया 
बहती जाती नैया 
धारा के संग ।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
(चित्र गूगल से साभार)
 

