Sunday 9 June 2013

परबत की पीर बहे


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
सोने -सी निखर गई 
नाम लिया तेरा 
सिमटी ,फिर बिखर गई 
2
है दिल की लाचारी 
मत खोलो साथी 
यादों की अलमारी 
3
वो लाख दुहाई दें 
बस में ना उनको 
अब याद रिहाई दें 
4
अँखियाँ कितनी तरसीं !
यादों की बदली 
फिर उमड़ -उमड़ बरसी 
5
बादल तो काले थे 
यादों के तेरी 
बस साथ उजाले थे 
6
हौले से हाय छुआ !
तेरी याद किरण 
मन मेरा कमल हुआ 
7
जग दरिया लाख कहे 
जान गई मैं तो 
परबत की पीर बहे 
8
पीले -से पात झरे 
अनचाहे ,दिल के 
होते हैं जख्म हरे 
-0-

18 comments:

  1. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (सोमवार, १० जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - दूरदर्शी पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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    1. विविध विषयों पर सुन्दर लिकं संयोजित किये हैं आपने ...उनमें 'परबत की पीर बहे' को स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार !
      सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

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  2. आपकी यह रचना कल मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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    1. सुन्दर संयोजन में "परबत की पीर बहे " को स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार अरुन शर्मा जी

      ज्योत्स्ना शर्मा

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  3. बहुत सुंदर क्षणिकाएं.

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    1. मेरे माहिया (एक पंजाबी छंद ) आपको पसंद आये ..बहुत बहुत आभार ..Neeraj Kumar जी

      ज्योत्स्ना शर्मा

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  4. उम्दा अभिव्यक्ति...आपकी यह रचना मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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    1. मैं ह्रदय से आभारी हूँ ..राजेन्द्र कुमार जी
      ज्योत्स्ना शर्मा

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  5. जग दरिया लाख कहे
    जान गई मैं तो
    परबत की पीर बहे ।

    पीले -से पात झरे
    अनचाहे ,दिल के
    होते हैं जख्म हरे ।
    बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .

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    1. ह्रदय से आभार ..Madan Mohan Saxena जी

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  6. बहुत सुंदर अहसास..बधाई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद् ..रश्मि शर्मा जी

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  7. आपके सभी माहिया हृदय को बहुत गहरे तक छू गए। इन हाइकु की मार्मिकता इनको उच्चकोटि के साहित्य में स्थापित करती है ।
    सोने -सी निखर गई
    नाम लिया तेरा
    सिमटी ,फिर बिखर गई ।
    -नाम लेकर 'सिमटना' और फिर 'बिखरना'की अभिव्यक्ति नूतनता लिये हुए है।
    3
    वो लाख दुहाई दें
    बस में ना उनको
    अब याद रिहाई दें ।
    -यादों को रिहाई देना तो सचमुच किसी न्यायधीश के वश में नहीं।
    4
    अँखियाँ कितनीं तरसीं
    यादों की बदली
    फिर उमड़ -उमड़ बरसी ।
    -यादों की बदली का उमड़ना और बरस'ना-प्रेम एवं विरह की उदात्त अनुभूति को सहजता से प्रस्तुत किया गया है।
    5
    बादल तो काले थे
    यादों के तेरी
    बस साथ उजाले थे ।
    6
    हौले से हाय छुआ
    तेरी याद- किरण
    मन मेरा कमल हुआ ।
    -'याद- किरण' द्वारा छूना और मन का कमल होना-मोती की तरह भाव को पिरो दिया है ।
    अन्य सभी माहिया भी बेजोड़ हैं ।परिमित बधाई ज्योत्स्ना जी ऽअपका यह ऐतिहासिक कार्य आने वाले दिनों में ज़रूर पहचान बनाएगा ।

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    1. सहज साहित्य से.. आ भाई काम्बोज जी, मेरे भावों से समरस आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है ....सदा आपके मार्गदर्शन एवं स्नेह भाव की अपेक्षा रहेगी .. ..
      सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

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  8. Replies
    1. bahut bahut aabhaar ..Mukesh Kumar Sinha ji
      saadar
      jyotsna sharma

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  9. आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !....सुंदर क्षणिकाएं.

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  10. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-


    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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