Wednesday 14 January 2015

शुभ मकरसंक्रांति !

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 




दिन भर जलना तपना, ढलना
 
होते नहीं निराश
 
कितना कठिन समय हो
 
रवि तुम! कब लेते अवकाश!

कुहर, तुहिन कण, बरखा, बादल
 
मिलकर करें प्रहार
 
अम्बर के एकाकी योद्धा
 
कभी न मानो हार!
 
अवनि से आकाश तलक दो
 
सबको तेज, प्रकाश!
 

धुन के पक्के, जान गए सब
 
अकड़ू हो थोड़े
 
भेजा करते हो सतरंगी
 
किरणों के घोड़े
 
जग उजियारा करें, मिटा दें
 
तम को रहे तलाश!

उलझन ले हम आए दिनकर
 
पास तुम्हारे हैं
 
मानव-मन में दानवता ने
 
पाँव पसारे हैं
 
जुगत बताओ हमको इसका
 
कैसे करें विनाश!

- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
१२ जनवरी २०१५

चित्र गूगल से साभार


10 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (16.01.2015) को "अजनबी देश" (चर्चा अंक-1860)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !

      सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

      Delete
  2. सुंदर, प्रभावी रचना...मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !

      सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

      Delete
  3. प्रशंसनीय रचना - बधाई मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ

    आग्रह है-- हमारे ब्लॉग पर भी पधारे
    शब्दों की मुस्कुराहट पर ...पुरानी डायरी के पन्ने : )

    ReplyDelete
    Replies
    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !

      सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

      Delete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    मकरसंक्रान्ति की शुभकामनायें

    ReplyDelete
    Replies
    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !

      सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

      Delete
  5. इस दानवता को खुद की मारना होगा ... जागना होगा ...
    भावपूर्ण रचना ...

    ReplyDelete
  6. सच कहा आपने !
    इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय !

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

    ReplyDelete