डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
करती हूँ नित
वंदन 
तेरे चरणों की 
रज है मुझको चन्दन ।1
लेती आराम
नहीं 
माँ तुझसा
प्यारा
दूजा कोई नाम
नहीं । 2
ख़ुशियों का
नीर बहे 
जन्म दिया जिस
पल 
माँ कितनी पीर
सहे ।3
दीपक बन जाती
है 
जीवन के पथ पर 
चलना सिखलाती
है ।4
आँचल की झोली
में 
अक्षर ज्ञान
मिला 
माँ तेरी बोली
में । 5
सुख से कब
सोती है 
बच्चों के दुख
पर 
सौ आँसू रोती
है ।6 
चंदा था रोटी
में 
माँ कितने
क़िस्से 
गूँथे हैं
चोटी में ।7 
जी भरकर प्यार
दिया 
सुख-आराम सभी 
बच्चों पर वार
दिया । 8
जाने कैसे
जाने 
दूर बसी मैया 
हर पीड़ा
पहचाने  । 9
कुछ जग के ,कुछ अपने 
नन्हीं आँखों
को 
माँ ने सौंपे
सपने ।10
रेशम की डोरी
है 
माँ सबसे मीठी 
तेरी इक लोरी
है । 11
दुनिया ने
ठुकराया 
सारी पीर हरे 
तेरी शीतल
छाया । 12
भर देता ज़ख़्म
हरा 
माँ तेरा आँचल 
हल्दी की गंध
भरा । 13
खाती है
झिड़की भी 
सारे रिश्तों
की
होती माँ
खिड़की भी । 14
व्यसनों से
मोड़ रही 
टूटे रिश्तों
का 
माँ ही इक
जोड़ रही । 15
ना पहना ,ना खाया 
सबकी मुश्किल
में 
तेरा धन सुख
लाया । 16
क्या ख़ूब
पहेली है 
बेटे ,बिटिया की 
माँ आज सहेली
है । 17
कितना बतियाती
माँ 
बातों की
गुल्लक 
कुछ राज़
छुपाती माँ । 18
दिन ऐसा भी आया 
संतानों ने ही
उस माँ को
तरसाया ।19 
ममता का मोल
नहीं 
माँ-बाबा
ख़ातिर 
दो मीठे बोल
नहीं । 20
कैसे जाएँ
भूले 
यादों में
झूलूँ 
मैं बाहों के
झूले ।21
लौटे घर शाम
हुए 
माँ के चरणों
में 
फिर चारों धाम
हुए। 22
- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
'अचिन्त साहित्य'  के मातृदिवस विशेषांक -3 (डॉ. पूर्णिमा राय ) में प्रकाशित रचना 
link -
http://www.achintsahitya.com/?p=823
(चित्र गूगल से साभार )
(चित्र गूगल से साभार )
 

