Thursday 22 February 2018

128 मन पंछी -सा


-सुनीता काम्बोज 


वरिष्ठ कवयित्री आदरणीया सुदर्शन रत्नाकर जी का हाइकु संग्रह " मन पंछी-सा "  पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ । पढ़ते - पढ़ते जैसे सृष्टि के हर रूप का दर्शन कर लिया हो । पुस्तक पढ़ना एक यात्रा की भाँति लगता है जैसे राही इस यात्रा के दौरान अनेक रसों का स्वादन करता है  यही इस पुस्तक यात्रा से अनुभव हुआ ।  तीन पँक्तियों का छोटा सा हाइकु तीन पँक्तियों में भावों का पूरा समन्दर समेटे हुए प्रतीत होता है । कवयित्री ने जिस संजीदगी से हाइकु रचे है वह अनुपम है ।
हाइकु संग्रह पढ़ते हुए अमलतास और मधुमालती की खुशबू श्वासों में बहने लगी । सार्थक लेखन वही होता है जो पाठक को मानसिक सुख प्रदान करे । बोलते हुए शब्द, अनूठी भाषा शैली हमेशा पाठक को अपनी ओर आकर्षित करती है । सुदर्शन रत्नाकर जी ने लेखनी  को भावों की स्याही में डुबो कर हाइकु  में रंग भरे हैं।अपनी आस्था को कवयित्री ने हाइकु के रंग में ऐसे रँग दिया ।
साईं की कृपा  /  हों सब काम पूरे /  सुख के झूले |
प्रकृति सदियों से मानव की सखी रही है । जब मनुष्य प्रकृति की गोद में जाता है तो उसका दुलार मनुष्य की रूह को चैन देता है । सुदर्शन जी ने आकाश पर छाई लालिमानदियों, झरनों के प्रेम में बँधे किनारे , छिटकी चाँदनी, दूध केसर, जैसी उपमा से हाइकु को निखारा है इन सुंदर बिम्बों के  प्रयोग से प्रकृति के नये रूप के दर्शन होते हैं । ये अदभुत कल्पना शक्ति का ही जादू है । हाइकु पढ़ते ही हर भाव चित्र के रूप में आँखों के सामने तैरने लगता है । फुनगी पर चिड़िया फुदक कर झूला झूल रही हो, की छवि मन पटल पर उभर गई - 
उषा है आई / लाल दुपट्टा ओढ़े / फूल हैं खिले ।
फुनगी  पर / फुदकती चिड़िया / झूले वो झूला ।
पंछी के सुर / दूध केसर घुला / हुआ सवेरा ।
उगा है सूर्य / ज्यों धवल कमल / नीली झील में
गुलमोहर / गगन में उगता / बाल रवि ज्यों 
चुप खड़े हैं  / पलाश-अमलतास /  रोके ज्यों साँस।
अगले वर्ष  / प्रवासी ये बादल  / फिर लौटेंगे ।
कवयित्री ने बहुत संवेदनशीलता और गहनता से हाइकु का शृंगार किया है । ये उत्तम संग्रह कवयित्री की अदभुत काव्य साधना के दर्शन कराता हैं । हाइकु में प्रकृति सौन्दर्य देखते ही बनता है । मौसम के बदलते रूप को निहारते हुए कवयित्री ने जो हाइकु रचे हैं । उनकी सोंधी खुशबू इस संग्रह में महसूस की जा सकती है । मन पंछी -सा जाने कहाँ से क्या–क्या खोज लाता है ।देखिए-
पहली वर्षा / बिखरी सोंधी गंध / धरती पर ।
फूल न पत्ते / कैसा यह मौसम / रूखा जीवन ।
पत्ते सूखते / सूखकर गिरते / नए उगते ।
आया वसंत / झुके पेड़ बौर से / कूके कोयल ।

बड़े शहरों की पीड़ा और अकेलेपन का दर्द , मानव की वेदना , जीवन दर्शन पर लिखे हाइकु पाठक को ठहर कर सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं -
बड़े शहर / उतनी ही दूरियाँ / दिलों के बीच ।
दिल का दर्द /आँखों से बहता / राज कहता ।
मुँदी जो आँखे / खत्म जीवन-लीला / गया अकेला ।
आगे की सोचो / अतीत भूल जाओ / आज में जियो 
यही जीवन / पीड़ा सहनी होती / जो भी मिलती ।
अच्छा होता / मर्यादित जीवन / खुशियाँ देता ।
संकट आता / चरित्र निखरता / बल मिलता ।

संदेशात्मक और आज के परिवेश की तस्वीर खींचते हाइकु बहुत कुछ कह जाते है । संकट में मनुष्य बिखर जाता है पर उसे इन मुश्किलों से लड़कर जो बल मिलता है उससे ही उसे मंजिल का रास्ता मिलता है । कवयित्री मर्यादित जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है । जिससे आज भटका मानव संतोष और शान्ति को पा सके ।

हठीला मन / नहीं यह मानता / छला है जाता ।
तुम्हारे बिन / सालता है रहता / अकेलापन ।
साथ खेलना / पेड़ों पर झूलना / कैसे भूलूँ मैं ।
राहों में काँटे / बिछाए थे जो मैंने / मुझे भी चुभे ।
दिल के तार / बजता ज्यों सितार / तुम जो आए ।
तुम्हारा स्पर्श / ठंडी हवा का झौका / छूता मन को ।

प्रीत के रंग और बचपन की यादें विरह और मिलन का अहसास शिक्षा से परिपूर्ण हाइकु में कवयित्री ने कहा कि अगर किसी की राहों में हम काटें बिछातें है तो  वो हमें स्वयं को भी चुभते हैं ।

पिता का साया / बरगद की छाया / शीतल मन ।
प्रसव पीड़ा / भला कौन सहता / नहीं समता ।
माँ तू मन्दिर / रब तेरे अंदर / देखूँ तुझको ।
कष्ट में होती / उफ़ नहीं करती / धैर्य रखती
तुमसे ही तो / महके अंगना / मेरी बहना ।
अनमोल रिश्तों की शीतल छाया, पिता का साया, माँ की विशालता, रिश्तों में बहता स्नेह  हाइकु से झरता प्रतीत होता है ।
रिश्ते मानव को हमेशा ऊर्जा प्रदान करते हैं । यही जीवन का आधार हैं, नारी की पीड़ा और त्याग को हाइकु द्वारा कहना सरल नहीं  पर कवयित्री ने ये चमत्कार अपनी सशक्त लेखनी से कर दिखाया है । स्पष्टता और सहजता से इतने शानदार हाइकु रचना बहुत बड़ी बात है ।
मेरी प्रिय पुस्तकों में आ.सुदर्शन रत्नाकर जी का हाइकु संग्रह मन पंछी-सा भी शामिल हो चुका है । ये हाइकु संग्रह नवोदित रचनाकारों के लिए प्रेरणा स्रोत्र है ।

वीर जवान / करते हैं सामना / बन चट्टान ।
महानगर / सागर लहराता / प्यासे मन ।
शोर ही शोर / कंकरीट जंगल / मेरा नगर। 
तुझे सलाम / देते तुम पहरा / करते रक्षा ।

वीर जवानों के अदम्य साहस व  देश भक्ति की भावना झरती काव्य गंगा प्यासे मन को तृप्त कर गई । महानगरों का सजीव चित्र और दिशा हीन मानव का रूप बहुत मार्मिक है ।अंत में मैं कवयित्री को हार्दिक बधाई देती हूँ आपकी लेखनी अविराम चलती रहे, इसी कामना के साथ आपके सुंदर भावों को नमन करती हूँ ।
सुनीता काम्बोज 

मन पंछी-सा (हाइकु -संग्रह): कवयित्री- सुदर्शन रत्नाकर ,मूल्य-200:00 रुपये
पृष्ठ-96 ,संस्करण :2016,प्रकाशक: अयन प्रकाशन , 1/20 महरौली नई दिल्ली-110030


12 comments:

  1. मन पंछी-सा (हाइकु -संग्रह): कवयित्री- सुदर्शन रत्नाकर ,मूल्य-200:00 रुपये
    पृष्ठ-96 ,संस्करण :2016,प्रकाशक: अयन प्रकाशन , 1/20 महरौली नई दिल्ली-110030

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    1. आपने समीक्षा को अपने ब्लॉग पर स्थान दिया इसके लिए हृदय से आभारी हूँ आदरणीया ।

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    2. आपने समीक्षा को अपने ब्लॉग पर स्थान दिया इसके लिए हृदय से आभारी हूँ आदरणीया

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  2. हृदय से आभार डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा जी ।

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  3. बहुत अच्छी समीक्षा

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    1. सादर धन्यवाद आदरणीय भैया जी । सादर नमन 🙏🙏🙏🙏

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-02-2017) को "सुबह का अखबार" (चर्चा अंक-2891) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय ..सादर नमन 🙏🙏🙏🙏🙏

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  5. बहुत बढ़िया

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    1. बहुत - बहुत शुक्रिया ओंकार जी

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  6. बहुत ही अच्छी समीक्षा है पुस्तक की ...
    हाइकू सुंदर लग रहे हैं ... बधाई इस समीक्षा की ...

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