(चित्र गूगल से साभार)
भला क्या बताऊँ ,कि, 'आखिर मैं क्या हूँ' ?
नदी हूँ , हवा हूँ , हया हूँ , अदा हूँ ।
कभी चाँदनी तो कभी अग्निधर्मा-
किरण हूँ, अँधेरे में जलता दिया हूँ ।
सुमन हूँ , सुधा हूँ , सृजन-साधना मैं ,
गरल हूँ मैं ,कंटक ,कहीं सर्वदा हूँ ।
कदम दर कदम मैं चली थी सँभलकर ,
मगर मुश्किलों का मुकम्मल पता हूँ ।
ज़रा ध्यान से जो सुनोगे मुझे तुम ,
तुम्हारे ही दिल की तुम्हारी सदा हूँ ।
भला अपनी पहचान मैं क्या बताऊँ ,
मरज हूँ , मरीजा हूँ , खुद ही दवा हूँ ।
समझ है तुम्हारी कहे 'ज्योति' क्या अब ,
बहन-बेटी हूँ , संगिनी , माँ , प्रिया हूँ ।
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
शुभ महिला दिवस 🌷🌷
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteस्त्री सब कुछ
नई रचना गुजरे वक़्त में से...
हृदय से धन्यवाद आपका 🙏
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज मंगलवार 9 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
हृदय से आभार आपका 💐🙏
Deleteअति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद 💐🙏
Deleteवाह ! वाह ! वाह ! यह ग़ज़ल केवल किसी ख़ास दिन के लिए नहीं, हमेशा के लिए है । लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ दिल जीत लेने वाले अशआर हैं ये तो ।
ReplyDeleteइस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभारी हूँ आपकी !
Deleteवाह
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उषा किरण जी 🙏💐
Deleteबहुत बहुत सराहनीय सुन्दर रचना | शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद 🙏
ReplyDeleteउम्दा गज़ल के लिए आत्मिक बधाई प्रिय सखी, सभी शेयर उम्दा
ReplyDeleteआत्मिक आभार सुनीता जी 💐🙏
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