क्षणिकाएँ : डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
हैरान जंगल !
सालों-साल तो
बाज और भेड़ियों ने
अपना कानून चलाया
गिद्धों ने नोच-नोच खाया
इलज़ाम मोरों पर आया ।
2
अपमार्जक !
उदास हैं गिद्ध
कुछ कह नहीं पाते हैं !
कह सकते तो कहते-
ये मनुष्य
इलज़ाम हम पर क्यों
लगाते हैं
हमने कहाँ मारा
ज़िंदा प्राणियों को,
हम तो मुर्दों को खाते हैं !
3
गरीबी, भूख,
फाक़ाकशी पर
क़ौम के आका
व्यवस्था से
इस क़दर गुस्सा खा गए
कि, बच्चों के हाथों में
बन्दूकें थमा गए ।
4
लो हो गया इन्साफ !
निर्दोष बरी भँवरा ,
उसका कोई दोष
नहीं पाया गया ।
धूर्त कलियों द्वारा
अपनी महक से
खुद ही लुभाया गया ,
पास बुलाया गया ।
5
कितनी अच्छी है वो !
मैं उससे .....
देर तक बतियाती रही
....और प्यारी तन्हाई
मेरी हाँ मे हाँ मिलाती रही ।
6
सुखद होता है
मित्रों से मिलना !
इसका
प्रमाण मिल गया
जब
किरणों की आहट से
फूलों का
चेहरा खिल गया....... 😊
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
( चित्र गूगल से साभार)
ReplyDeleteसुखद होता है
मित्रों से मिलना !
इसका
प्रमाण मिल गया
जब
किरणों की आहट से
फूलों का
चेहरा खिल गया ....शुभ संध्या 🙏
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत अच्छी क्षणिकाएं हैं ये । विशेष रूप से अंतिम दो क्षणिकाओं ने तो मेरा दिल ही जीत लिया ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत सार्थक और सुन्दर क्षणिकाएँ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हृदय से आभार आपका 🙏
Deleteवाह! आनंद आ गया। सुंदर और चुटीली।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteवाह! बेहतरीन ।
ReplyDeleteहृदय से आभार 🙏
Deleteहैरान जंगल !
ReplyDeleteसालों-साल तो
बाज और भेड़ियों ने
अपना कानून चलाया
गिद्धों ने नोच-नोच खाया
इलज़ाम मोरों पर आया ।
ये क्षणिका आज की राजनीति से प्रेरित लग रही है ,क्यों कि मुझे इसी संदर्भ में सटीक लग रही है । ज़बरदस्त तंज़ है ।
2
अपमार्जक !
उदास हैं गिद्ध
कुछ कह नहीं पाते हैं !
कह सकते तो कहते-
ये मनुष्य
इलज़ाम हम पर क्यों
लगाते हैं
हमने कहाँ मारा
ज़िंदा प्राणियों को,
हम तो मुर्दों को खाते हैं !
इंसान की फितरत ही है कि अपने दोष दूसरों पर आरोपित कर देने की । सटीक कटाक्ष ।
3
गरीबी, भूख,
फाक़ाकशी पर
क़ौम के आका
व्यवस्था से
इस क़दर गुस्सा खा गए
कि, बच्चों के हाथों में
बन्दूकें थमा गए ।
कौम के आका व्यवस्था ही नहीं कर पाए तो भुखमरी से बचने के लिए थाम लीं बंदूकें ।विचारणीय ।
4
लो हो गया इन्साफ !
निर्दोष बरी भँवरा ,
उसका कोई दोष
नहीं पाया गया ।
धूर्त कलियों द्वारा
अपनी महक से
खुद ही लुभाया गया ,
पास बुलाया गया ।
गंभीर मुद्दे पर सटीक लिखा है । दोष लड़कों का कहाँ होता है ? वो तो लड़कियाँ ही भड़काती हैं और बलात्कार की घटनाएँ जन्म लेती हैं ।भरपूर व्यंग्य हमारी न्याय व्यवस्था पर
5
कितनी अच्छी है वो !
मैं उससे .....
देर तक बतियाती रही
....और प्यारी तन्हाई
मेरी हाँ मे हाँ मिलाती रही ।
मैं और मेरी तन्हाई ... बहुत खूब ।
6
सुखद होता है
मित्रों से मिलना !
इसका
प्रमाण मिल गया
जब
किरणों की आहट से
फूलों का
चेहरा खिल गया.....
अहा , क्या बात । मित्रों से मिल चेहरे खिल ही जाते हैं ।
सभी क्षणिकाएँ एक से बढ़ कर एक । लेकिन 4 नंबर वाली बहुत मारक लिखी है ।
क्षणिकाओं के मर्म तक जाती समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार आपका 🙏
Deleteज्योत्सना जी ,सुंदर, संदेशपूर्ण क्षणिकाओं को पढ़कर आनंद आ गया,सादर शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteहृदय से आभारी हूँ जिज्ञासा जी 🌷🙏
Deleteज्योत्सना जी समय मिले तो मेरे गीतों के ब्लॉग पर भ्रमण करें,लोकगीतो का आनंद मिलेगा आपको ,सादर नमन ।
ReplyDeleteअवश्य सखी , लोकगीतों का अपना अलग आनन्द है !
Deleteवाह! सुंदर
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक
बहुत-बहुत आभार डॉ.पूर्वा शर्मा जी 🌷🙏
Deleteसुंदर क्षणिकाएं।
ReplyDeleteबधाई
हृदय से आभार आपका 🌷🙏
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