Tuesday 7 March 2023

180-लौटी जो घर

(चित्र गूगल से साभार) 
 1 
कितना गुस्सा थी मैं 
किसी की नहीं सुनी 
मन का पहना , मन का खाया 
कितना शोर मचाया 
खूब भटकी 
अपनी 'आज़ादी' के साथ
 लौटी जो घर.... न जाने किन 
ख्यालों में खो गई 
और फिर .... तुम्हारे कन्धे पर 
सिर रखकर सो गई । 
 2 
 सकरी गलियों में 
बड़े-बड़े वाहन 
अटक ही जाएँगे 
 सुनो ! मन को विस्तार दो 
 तभी बड़े विचार आएंगे । 
 3 
आज के दौर में
 दीमकों ने खाई तो , 
किताब मुस्कराई 
और बोली ...चलो ! किसी के तो काम आई ।
 4 
झूठ के नगर में 
किसी ने हमारे 
प्यारे 'सच' की बात चला दी 
सब चिल्लाए , " ऐसा कुछ नहीं होता है"
 मज़े की बात हमने भी हाँ में हाँ मिला दी।

 ************** 
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा





11 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ -०३-२०२३) को 'माँ बच्चों का बसंत'(चर्चा-अंक -४६४५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. जी , बहुत बहुत आभार आपका 🙏

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  2. बहुत ही सुंदर सृजन

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    1. प्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभार आपका 🙏

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  4. शानदार लघु रचनाएं, संवेदनाओं से पूरित हृदय का आलाप।
    सस्नेह।

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    1. प्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभार आपका 🙏

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  5. शानदार क्षणिकाएं। सुंदर लेखन के लिए बधाई।

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    1. प्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभार जिज्ञासा जी 🙏

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