Thursday 26 March 2015

एक ग़ज़ल !



डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

खुद को खुद समझाया कर ,
केवल दर्द न गाया कर |
सच्चाई....औ’....खुद्दारी ,
इन पर वक्त न जाया कर |
दुनिया का दस्तूर यही ,
खाया और खिलाया कर |
अपने भी कुछ फ़र्ज़ यहाँ ,
यह मत याद दिलाया कर |
बस आईना ले दिल का ,

खुद को रोज़ दिखाया कर |५.
       - 'गुलशने-ग़ज़ल' से 

डॉ. मिथिलेशकुमारी मिश्र जी के सम्पादन में महिला ग़ज़लकारों की ग़ज़लों का संकलन 'गुलशने-ग़ज़ल' वाणी -वाटिका प्रकाशन ,सैदपुर , पटना ,बिहार से प्रकाशित हुआ है | जिसमें उन्होंने वरिष्ठ महिला रचनाकारों के साथ मेरी भी 27 रचनाओं को स्थान देकर मेरा बहुत उत्साहवर्धन किया है | इस प्रोत्साहन के लिए आदरणीया डॉ. साहिबा की हृदय से आभारी हूँ | 

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

  


17 comments:

  1. नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (27-03-2015) को "जीवन अगर सवाल है, मिलता यहीं जवाब" {चर्चा - 1930} पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हृदय से आभार आदरणीय !

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    2. हृदय से आभार आदरणीय !

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  2. लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के ... बहुत बधाई हो आपको गजलों के प्रकाशन की ...

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    1. हृदय से आभार आदरणीय !

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    2. हृदय से आभार आदरणीय !

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  3. झार्दिक बधाई डॉ ज्योत्स्ना जी ,ग़ज़ल की इस सफल यात्रा के लिए ।

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    1. हृदय से आभार आदरणीय !

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  4. वाह बहुत बढ़िया .....बधाई आदरणीया

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  5. बहुत बढ़िया ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब हार्दिक बधाई.

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  6. बहुत बढ़िया ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब हार्दिक बधाई.

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